गृहस्थाचार्य
From जैनकोष
पंचाध्यायी / उत्तरार्ध श्लोक 648
न निषिद्धस्तदादेशो गृहिणां व्रतधारिणाम्...।
= व्रती गृहस्थों को भी आचार्यों के समान आदेश करना निषिद्ध नहीं है।
पंचाध्यायी / उत्तरार्ध श्लोक 649,652
न निषिद्धो यथाम्नायादव्रतिनां मनागपि। हिंसकश्चोपदेशोऽपि नोपयोज्योऽत्र कारणात् ॥649॥ नूनं प्रोक्तापदेशोऽपि न रागाय विरागिणाम्। रागिणामेव रागाय ततोऽवश्यं निषेधितः ॥652॥
= आदेश और उपदेश के विषय में अव्रती गृहस्थों को जिस प्रकार दूसरे के लिए आम्नाय के अनुसार थोड़ा-सा भी उपदेश करना निषिद्ध नहीं है, उसी प्रकार किसी भी कारण से दूसरे के लिए हिंसा का उपदेश देना उचित नहीं है ॥649॥ निश्चय करके वीतरागियों का पूर्वोक्त उपदेश देना भी राग के लिए नहीं होता है किंतु सरागियों का ही पूर्वोक्त उपदेश राग के लिए होता है। इसलिए रागियों को उपदेश देने के लिए अवश्य निषेध किया है ॥652॥
देखें आचार्य - 2।