योगसार - चूलिका-अधिकार गाथा 490
From जैनकोष
मुमुक्षुओं का स्वरूप -
न कुत्राप्याग्रहस्तत्त्वे विधातव्यो मुमुक्षुभि: ।
निर्वाणं साध्यते यस्मात् समस्ताग्रहवर्जितै: ।।४९०।।
अन्वय :- मुमुक्षुभि: कुत्र अपि तत्त्वे आग्रह: न विधातव्य:; यस्मात् समस्त-आग्रहवि र्जतै: निर्वाणं साध्यते ।
सरलार्थ :- जो मोक्ष के अभिलाषी/इच्छुक जीव हैं, उन्हें अन्य किसी भी तत्त्व का अर्थात् व्यवहार धर्म के साधन/निमित्तरूप पुण्यपरिणामों का अथवा शुभ क्रियाओं का आग्रह/हठ नहीं रखना चाहिए; क्योंकि जो समस्त प्रकार के आग्रहों से/एकांत अभिनिवेशों से रहित हो जाते हैं अर्थात् मध्यस्थ/सहज रहते हैं वे ही सिद्धपद को प्राप्त करते हैं ।