योगसार - चूलिका-अधिकार गाथा 501
From जैनकोष
सब द्रव्य स्वस्वभाव में स्थित है -
सर्वे भावा:स्वभावेन स्वस्वभाव-व्यवस्थिता: ।
न शक्यन्तेsन्यथा कर्तुं ते परेण कदाचन ।।५०२।।
अन्वय : - सर्वे भावा: स्वभावेन स्वस्वभाव-व्यवस्थिता: (सन्ति), ते परेण कदाचन अन्यथा कर्तुं न शक्यन्ते ।
सरलार्थ :- (जाति की अपेक्षा जीवादि छह द्रव्य और संख्या की अपेक्षा अनंतानंत) सब द्रव्य स्वभाव से अपने-अपने स्वभाव अर्थात् स्वरूप में सदा स्थित रहते हैं; वे सभी द्रव्य पर के द्वारा कभी अन्यथारूप नहीं किये जा सकते ।