जग में जीवन थोरा, रे अज्ञानी जागि
From जैनकोष
जग में जीवन थोरा, रे अज्ञानी जागि
(राग ख्याल)
जग में जीवन थोरा, रे अज्ञानी जागि ।।टेक ।।
जनम ताड़ तरुतैं पड़ै, फल संसारी जीव ।
मौत महीमैं आय हैं, और न ठौर सदीव ।।१ ।।जगमें .।।
गिर-सिर दिवला जोइया, चहुंदिशि बाजै पौन ।
बलत अचंभा मानिया, बुझत अचंभा कौन ।।२ ।।जगमें .।।
जो छिन जाय सो आयुमैं, निशि दिन ढूकै काल ।
बाँधि सकै तो है भला, पानी पहिली पाल ।।३ ।।जगमें .।।
मनुष देह दुर्लभ्य है, मति चूकै यह दाव ।
भूधर राजुल कंतकी, शरण सिताबी आव ।।४ ।।जगमें .।।