शोक
From जैनकोष
1. शोक व शोक नामकर्म का लक्षण
स.सि./6/11/328/12 अनुग्राहकसंबन्धविच्छेदे वैक्लव्यविशेष: शोक:।
स.सि./8/9/386/1 यद्विपाकाच्छोचनं स शोक:। =1. उपकार करने वाले से सम्बन्ध के टूट जाने पर जो विकलता होती है वह शोक है (रा.वा./6/11/2/519/21)। 2. जिसके उदय से शोक होता है वह शोक (नामकर्म) है। (रा.वा./8/9/4/574/18), (ध.6/1,9-1,24/47/8), (ध.13/5,5,96/361/12)।
2. शोक अरति पूर्वक होता है
ध.12/4,2,7,100/57/2 कुदो। अरदिपुरगमत्तादो। कधमरदिपुरगमत्तं। अरदीए विणा सोगाणुप्पत्तीए। =क्योंकि, वह (शोक) अरति पूर्वक होता है। प्रश्न - वह अरति पूर्वक कैसे होता है? उत्तर - क्योंकि, अरति के बिना शोक नहीं उत्पन्न होता है।
3. शोक का उत्कृष्ट उदय काल
ध.12/4,2,7,101/57/4 सोगो उक्कस्सेण छम्मासमेत्तो चेव। =शोक का उत्कृष्ट उदय काल छह मास पर्यन्त ही है।
* अन्य सम्बन्धित विषय
- शोक द्वेष है - देखें कषाय - 4।
- शोक प्रकृति के बन्ध योग्य परिणाम - देखें मोहनीय - 3.6।