शैवदर्शन
From जैनकोष
- शुद्धाद्वैत का अपर नाम। - ई. श. 15 में इसकी स्थापना हुई। वल्लभ, श्रीकंठ व भास्कर इसके प्रधान संस्थापक थे। श्रीकंठकृत शिवसूत्र व भास्कर कृत वार्तिक प्रधान ग्रंथ हैं। इनके मत में ब्रह्म के पर अपर दो रूप नहीं माने जाते। पर ब्रह्म ही एक तत्त्व है। ब्रह्म अंशी और जड़ व अजड़ जगत् इसके दो अंश हैं। देखें वेदांत - 7।
- वैदिक दर्शन का स्थूल से सूक्ष्म की ओर विकास - वैदिक दर्शन भारतीय संस्कृति में अपना विशिष्ट स्थान रखता है। किसी प्राथमिक अथवा अनिष्णात शिष्य को अत्यंत गुह्य इस तत्त्व का परिचय देना शक्य न होने से यह दर्शन एक होते हुए भी छ: भागों में विभाजित हो गया है–वैशेषिक, नैयायिक, मीमांसक, सांख्य, योग और वेदांत। यद्यपि व्यवहार भूमि पर ये छहों अपनी-अपनी स्वतंत्र सत्ता रखते प्रतीत होते हैं, तदपि परमार्थत: एक-दूसरे से पृथक् कुछ न होकर ये एक अखंड वैदिक दर्शन के उत्तरोत्तर उन्नत छ: सोपान हैं। देखें दर्शन (षड् दर्शन)।