आवास
From जैनकोष
तिलोयपण्णत्ति अधिकार 3/23 दहसलदुमादीणं रम्माणं उवरि होंति आवासा। णागादिणं केसिं तियणिलया भावमेक्कमसुराणं ॥23॥
= रमणीय तालाब, पर्वत और वृक्षादिकके ऊपर स्थित व्यन्तर आदिक देवोंके निवास स्थआनोंको आवास कहते हैं।
तिलोयपण्णत्ति अधिकार 6/7 रयणप्पहपुढवीए भवणाणिं दीवउदहि उवरिम्मि। भवण पुराणिं दहगिरिपहुदीणं उवरि आवासा ॥7॥
= रत्नप्रभा पृथिवीमें भवन, द्वीप समुद्रोंके ऊपर भवनपुर और द्रह एवं पर्वतादिकोंके ऊपर (व्यन्तरोंके) आवास होते हैं।
धवला पुस्तक 14/5,6,93/86/6 अडरस्स अंतोट्ठियो कच्छउडभंडरंतोट्ठियवक्खारसमाणो आवासो णाम।...एवकेक्कम्हि आवासे ताओ असंखेज्जलोगमेत्ताओ होंति। एक्केक्कम्हि पुलवियाए जसंखेज्जलोगमेत्ताणि णिगोदसरीराणि।
= जो अण्डरके भीतर स्थित हैं तथा कच्छउडअण्डरके भीतर स्थित वक्खारके समान हैं उन्हें आवास कहते हैं।...एक एक आवासमें वे (पुलवियाँ-देखें पुलवि ) असंख्यात् लोक प्रमाण होती हैं। तथा एक एक आवासकी अलग-अगल एक-एक पुलविमें असंख्यात लोक प्रमाण शरीर होते हैं-
(विशेष देखें वनस्पति - 3.7)
त्रिलोकसार गाथा 294 वेंतरणिलयतियाणि य भवणपुरावासभवणणामाणि। दीव समुद्दे दहगिरितरुह्मि चित्तावणि म्हि कमे ॥294॥
= भवनपुर, आवास अर भवन ए विंतरनिलयनिके तीन ही नाम है। तहाँ क्रम करि द्वीप समुद्रनिविषै भवनपुर पाईए है। बहुरि द्रह पर्वत वृक्ष इनविषै आवास पाईए हैं बहुरि चित्रपृथिवी विषैं नीचे भवन पाईए है।