जीवन के परिनामनिकी यह
From जैनकोष
(राग ठुमरी)
जीवनके परिनामनिकी यह, अति विचित्रता देखहु ज्ञानी ।।टेक ।।
नित्य निगोदमाहितैं कढ़िकर, नर परजाय पाय सुखदानी ।
समकित लहि अंतर्मुहूर्तमें, केवल पाय वरै शिवरानी ।।१ ।।
मुनि एकादश गुणथानक चढ़ि, गिरत तहांतैं चितभ्रम ठानी ।
भ्रमत अर्धपुद्गलप्रावर्तन, किंचित् ऊन काल परमानी ।।२ ।।
निज परिनामनिकी सँभालमें, तातैं गाफिल मत ह्वै प्रानी ।
बंध मोक्ष परिनामनिहीसों, कहत सदा श्रीजिनवरवानी ।।३ ।।
सकल उपाधिनिमित भावनिसों, भिन्न सु निज परनतिको छानी ।
ताहिं जानि रुचि ठानि हो हु थिर, `भागचन्द' यह सीख सयानी ।।४ ।।