सत्ता रंगभूमिमें, नटत ब्रह्म नटराय
From जैनकोष
सत्ता रंगभूमिमें, नटत ब्रह्म नटराय ।।टेक ।।
रत्नत्रय आभूषणमंडित, शोभा अगम अथाय ।
सहज सखा निशंकादिक गुन, अतुल समाज बढ़ाय ।।१ ।।
समता वीन मधुररस बोलै, ध्यान मृदंग बजाय ।
नदत निर्जरा नाद अनूपम, नूपुर संवर ल्याय ।।२ ।।
लय निज-रूप-मगनता-ल्यावत, नृत्य सुज्ञान कराय ।
समरस गीतालापन पुनि जो, दुर्लभ जगमहँ आय ।।३ ।।
`भागचन्द' आपहि रीझत तहाँ, परम समाधि लगाय ।
तहाँ कृतकृत्य सु होत मोक्षनिधि, अतुल इनामहिं पाय ।।४ ।।