केवलज्ञान
From जैनकोष
जीवन्मुक्त योगियों का एक निर्विकल्प अतींद्रिय अतिशय ज्ञान है जो बिना इच्छा व बुद्धि के प्रयोग से सर्वांग से सर्वकाल व क्षेत्र संबंधी सर्व पदार्थों को हस्तामलकवत् टंकोत्कीर्ण प्रत्यक्ष देखता है। इसी के कारण वह योगी सर्वज्ञ कहाते हैं। स्व व पर ग्राही होने के कारण इसमें भी ज्ञान का सामान्य लक्षण घटित होता है। यह ज्ञान का स्वाभाविक व शुद्ध परिणमन है।
- केवलज्ञान निर्देश
- केवलज्ञान का व्युत्पत्ति अर्थ।
- केवलज्ञान निरपेक्ष व असहाय है।
- केवलज्ञान में विकल्प का कथंचित् सद्भाव।–देखें विकल्प ।
- केवलज्ञान एक ही प्रकार का है।
- केवलज्ञान गुण नहीं पर्याय है।
- केवलज्ञान भी ज्ञान सामान्य का अंश है।–देखें ज्ञान - I.4.1-2
- यह मोह व ज्ञानावरणीय के क्षय से उत्पन्न होता है।
- केवलज्ञान निर्देश का मतार्थ।
- केवलज्ञान कथंचित् परिणामी है।–देखें केवलज्ञानी - 5.3।
- केवलज्ञान में शुद्ध परिणमन होता है।–देखें परिणमन
- यह शुद्धात्मा में ही उत्पन्न होता है।–देखें केवलज्ञान - 5.6।
- सभी मार्गणास्थानों में आय के अनुसार ही व्यय।–देखें मार्गणा ।
- तीसरे व चौथे काल में ही होना संभव है।–देखें मोक्ष - 4.3।
- केवलज्ञान विषयक गुणस्थान, मार्गणास्थान, व जीवसमास आदि के स्वामित्व विषयक 20 प्ररूपणाएँ–देखें सत् ।
- केवलज्ञान विषयक सत्, संख्या, क्षेत्र, स्पर्शन, काल, अंतर, भाव व अल्पबहुत्व–देखें वह वह नाम ।
- केवलज्ञान निसर्गज नहीं होता–देखें अधिगम - 10
- केवलज्ञान का व्युत्पत्ति अर्थ।
- केवलज्ञान की विचित्रता
- सर्व को जानता हुआ भी व्याकुल नहीं होता।
- सर्वांग से जानता है।
- प्रतिबिंबवत् जानता है।
- टंकोत्कीर्णवत् जानता है।
- अक्रमरूप से युगपत् एकक्षण में जानता है।
- तात्कालिकवत् जानता है।
- सर्वज्ञेयों को पृथक् पृथक् जानता है।
- सर्व को जानता हुआ भी व्याकुल नहीं होता।
- केवलज्ञान की सर्वग्राहकता
- सबकुछ जानता है।
- समस्त लोकालोक को जानता है।
- संपूर्ण द्रव्य क्षेत्र काल भाव को जानता है।
- सर्व द्रव्यों व उनकी पर्यायों को जानता है।
- त्रिकाली पर्यायों को जानता है।
- सद्भूत व असद्भूत सब पर्यायों को जानता है।
- अनंत व असंख्यात को जानता है–देखें अनंत - 2.4,5।
- प्रयोजनभूत व अप्रयोजनभूत सबको जानता है।
- इससे भी अनंतगुणा जानने को समर्थ है।
- इसे समर्थ न माने सो अज्ञानी है।
- सबकुछ जानता है।
- केवलज्ञान ज्ञानसामान्य के बराबर है।–देखें ज्ञान - I.4।
- केवलज्ञान की सिद्धि में हेतु
- यदि सर्व को न जाने तो एक को भी नहीं जान सकता।
- यदि त्रिकाल को न जाने तो इसकी दिव्यता ही क्या।
- अपरिमित विषय ही तो इसका माहात्म्य है।
- सर्वज्ञत्व का अभाववादी क्या स्वयं सर्वज्ञ है?
- बाधक प्रमाण का अभाव होने से सर्वज्ञत्व सिद्ध है।
- अतिशय पूज्य होने से सर्वज्ञत्व सिद्ध है।
- केवलज्ञान का अंश सर्वप्रत्यक्ष होने से यह सिद्ध है।
- मति आदि ज्ञान केवलज्ञान के अंश हैं।–देखें ज्ञान - I.4।
- सूक्ष्मादि पदार्थ प्रमेय होने से सर्वज्ञत्व सिद्ध है।
- कर्मों व दोषों का अभाव होने से सर्वज्ञत्व सिद्ध है।
- यदि सर्व को न जाने तो एक को भी नहीं जान सकता।
- केवलज्ञान विषयक शंका समाधान
- केवलज्ञान असहाय कैसे है ?
- विनष्ट व अनुत्पन्न पदार्थों का ज्ञान कैसे संभव है ?
- अपरिणामी केवलज्ञान परिणामी पदार्थों को कैसे जान सकता है ?
- अनादि व अनंत ज्ञानगम्य कैसे हो ? देखें अनंत - 2।
- केवलज्ञानी को प्रश्न सुनने की क्या आवश्यकता ?
- केवलज्ञान की प्रत्यक्षता संबंधी शंकाएँ–देखें प्रत्यक्ष ।
- सर्वज्ञत्व के साथ वक्तृत्व का विरोध नहीं है।
- अर्हंतों को ही क्यों हो, अन्य को क्यों नहीं।
- सर्वज्ञत्व जानने का प्रयोजन।
- केवलज्ञान असहाय कैसे है ?
- केवलज्ञान का स्वपरप्रकाशकपना
- निश्चय से स्व को व्यवहार से पर को जानता है।
- निश्चय से पर को न जानने का तात्पर्य उपयोग का पर के साथ तन्मय न होना है।
- आत्मा ज्ञेय के साथ नहीं, पर ज्ञेयाकार के साथ तन्मय होता है।
- आत्मा ज्ञेयरूप नहीं, पर ज्ञेयाकाररूप से अवश्य परिणमन करता है।
- ज्ञानाकार व ज्ञेयाकार का अर्थ।
- वास्तव में ज्ञेयाकारों से प्रतिबिंबित निज आत्मा को देखते हैं।
- ज्ञेयाकार में ज्ञेय का उपचार करके ज्ञेय को जाना कहा जाता है।
- छद्मस्थ भी निश्चय से स्व को व्यवहार से पर को जानते हैं।
- केवलज्ञान के स्वपरप्रकाशकपने का समन्वय।
- ज्ञान और दर्शन स्वभावी आत्मा ही वास्तव में स्वपर प्रकाशी है।–देखें दर्शन - 2.6।
- यदि एक को नहीं जानता तो सर्व को भी नहीं जानता–देखें श्रुतकेवली