चंद्रलेखा
From जैनकोष
दधिमुख नगर के राजा गंधर्व और उसकी रानी अमरा की ज्येष्ठ पुत्री । यह अपनी दोनों छोटी बहिनों विद्युत्प्रभा और तरंगमाला के साथ विद्यासिद्धि मे संलग्न थी । पूर्व वैर वश अंगारकेतु
विद्याधर ने इनके ऊपर घोर उपसर्ग किये थे । इन्होंने उपसर्गों को सहन किया जिससे छ: वर्ष से भी अधिक समय में सिद्ध होने वाली वह विद्या बारह दिन में ही सिद्ध हो गयी । पद्मपुराण 51. 25-26, 37-40, 47-48