विसदृश
From जैनकोष
पंचाध्यायी / पूर्वार्ध/328 यदि वा तदिह ज्ञानं परिणामः परिणमन्न तदिति यतः। स्वावसरे यत्सत्त्वं तदसत्त्वं परत्र नययोगात्।328। = ज्ञानरूप परिणाम परिणमन करता हुआ ‘यह पूर्व ज्ञानरूप नहीं है’ यह विसदृश का उदाहरण है। क्योंकि विवक्षित परिणाम का अपने समय में जो सत्त्व है दूसरे समय में पर्यायार्थिक नय से उसका वह सत्त्व नहीं है।