सिद्धांतकोष से
सामान्य परिचय
तीर्थंकर क्रमांक |
21 |
चिह्न |
उत्पल (नीलकमल) |
पिता |
विजय |
माता |
महादेवी |
वंश |
इक्ष्वाकु |
उत्सेध (ऊँचाई) |
15 धनुष |
वर्ण |
स्वर्ण |
आयु |
10000 वर्ष |
पूर्व भव सम्बंधित तथ्य
पूर्व मनुष्य भव |
सिद्धार्थ |
पूर्व मनुष्य भव में क्या थे |
मण्डलेश्वर |
पूर्व मनुष्य भव के पिता |
त्रिलोकीय |
पूर्व मनुष्य भव का देश, नगर |
जम्बू भरत कौशाम्बी |
पूर्व भव की देव पर्याय |
अपराजित |
गर्भ-जन्म कल्याणक सम्बंधित तथ्य
गर्भ-तिथि |
आश्विन कृष्ण 2 |
गर्भ-नक्षत्र |
अश्विनी |
गर्भ-काल |
अन्तिम रात्रि |
जन्म तिथि |
आषाढ़ कृष्ण 10 |
जन्म नगरी |
मिथिला |
जन्म नक्षत्र |
अश्विनी |
दीक्षा कल्याणक सम्बंधित तथ्य
वैराग्य कारण |
जातिस्मरण |
दीक्षा तिथि |
आषाढ़ कृष्ण 10 |
दीक्षा नक्षत्र |
अश्विनी |
दीक्षा काल |
अपराह्न |
दीक्षोपवास |
तृतीय भक्त |
दीक्षा वन |
चैत्र |
दीक्षा वृक्ष |
बकुल |
सह दीक्षित |
2000 |
ज्ञान कल्याणक सम्बंधित तथ्य
केवलज्ञान तिथि |
चैत्र शुक्ल 3 |
केवलज्ञान नक्षत्र |
अश्विनी |
केवलोत्पत्ति काल |
अपराह्न |
केवल स्थान |
मिथिला |
केवल वन |
चित्र |
केवल वृक्ष |
बकुल |
निर्वाण कल्याणक सम्बंधित तथ्य
योग निवृत्ति काल |
1 मास पूर्व |
निर्वाण तिथि |
वैशाख कृष्ण 14 |
निर्वाण नक्षत्र |
अश्विनी |
निर्वाण काल |
प्रात: |
निर्वाण क्षेत्र |
सम्मेद |
समवशरण सम्बंधित तथ्य
समवसरण का विस्तार |
2 योजन |
सह मुक्त |
1000 |
पूर्वधारी |
450 |
शिक्षक |
12600 |
अवधिज्ञानी |
1600 |
केवली |
1600 |
विक्रियाधारी |
1500 |
मन:पर्ययज्ञानी |
1250 |
वादी |
1000 |
सर्व ऋषि संख्या |
20000 |
गणधर संख्या |
17 |
मुख्य गणधर |
सप्रभ |
आर्यिका संख्या |
45000 |
मुख्य आर्यिका |
मार्गिणी |
श्रावक संख्या |
100000 |
मुख्य श्रोता |
विजय |
श्राविका संख्या |
300000 |
यक्ष |
गोमेध |
यक्षिणी |
बहुरूपिणी |
आयु विभाग
आयु |
10000 वर्ष |
कुमारकाल |
2500 वर्ष |
विशेषता |
मण्डलीक |
राज्यकाल |
5000 वर्ष |
छद्मस्थ काल |
9 वर्ष |
केवलिकाल |
2491 वर्ष |
तीर्थ संबंधी तथ्य
जन्मान्तरालकाल |
620,000 वर्ष |
केवलोत्पत्ति अन्तराल |
501791 वर्ष 56 दिन |
निर्वाण अन्तराल |
5 लाख वर्ष |
तीर्थकाल |
501800 वर्ष |
तीर्थ व्युच्छित्ति |
❌ |
शासन काल में हुए अन्य शलाका पुरुष |
चक्रवर्ती |
जयसेन |
बलदेव |
❌ |
नारायण |
❌ |
प्रतिनारायण |
❌ |
रुद्र |
❌ |
( महापुराण/69/ श्लोक)‒पूर्वभव नं.2 में कौशांबी नगरी के राजा पार्थिव के पुत्र सिद्धार्थ थे।2-4। पूर्वभव नं.1 में अपराजित विमान में अहमिंद्र हुए।16। वर्तमान भव में 21 तीर्थंकर हुए। (युगपत् सर्वभव देखें [[ ]] महापुराण/69/71 )। इनका विशेष परिचय‒देखें तीर्थंकर - 5।
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पुराणकोष से
अवसर्पिणी काल के दु:षमा-सुषमा नामक चौथे काल में उत्पन्न शलाकापुरुष और इक्कीसवें तीर्थंकर । ये जंबूद्वीप में वंग देश की मिथिला नगरी के राजा विजय और रानी वप्पिला के पुत्र थे । ये आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की द्वितीया को रात्रि के पिछले पहर में अश्विनी नक्षत्र में गर्भ में आये तथा आषाढ़ कृष्णा दशमी के दिन स्वाति नक्षत्र के योग में जन्में थे । यह नाम इन्हें देवों ने दिया था । इनकी आयु दस हजार वर्ष, शारीरिक अवगाहना पंद्रह धनुष और कांति स्वर्ण के समान थी । कुमारकाल के अढ़ाई हजार वर्ष बीत जाने पर इन्होंने अभिषेकपूर्वक राज्य किया था । महापुराण 2.133-134, 69. 18-34, पद्मपुराण 1.12, 5.215 हरिवंशपुराण 1.23, वीरवर्द्धमान चरित्र 1.31, 18.107 । हरिवंशपुराण कार ने इनकी आयु पंद्रह हजार वर्ष तथा तीर्थ पाँच लाख वर्ष का कहा है । हरिवंशपुराण 18.5 राज्य करते हुए पाँच हजार वर्ष पश्चात् सारस्वत देवों द्वारा पूजे जाने पर उत्पन्न वैराग्यवंश इन्होंने अपने पुत्र सुप्रभ को राज्याभार सौंपा था तथा देवों द्वारा किये गये दीक्षाकल्याणक को प्राप्त कर ये उत्तरकुरु नाम की पालकी में बैठकर चैत्रवन गये थे । वहाँ इन्होंने आषाढ़ कृष्ण दशमी के दिन अश्विनी नक्षत्र में सायंकाल के समय एक हजार राजाओं के साथ संयम धारण किया था । इनको उसी समय मन:पर्ययज्ञान प्राप्त हो गया था । वीरपुर नगर में राजा दत्त ने इन्हें आहार देकर पंचाश्चर्य प्राप्त किये थे । छद्मस्थ अवस्था के नौ वर्ष बीत जाने पर ये दीक्षावन मे बकुल वृक्ष के नीच बेला का नियम लेकर ध्यानारूढ़ हुए और इन्हें मार्गशीर्ष के शुक्लपक्ष की एकादशी के दिन सायंकाल के समय केवलज्ञान हुआ । इनके संघ में सुप्रभायं सहित सत्रह गणधर, चार सौ पचास समस्त पूर्वों के ज्ञाता, बारह हजार छ: सौ व्रतधारी शिक्षक, एक हजार छ: सौ अवधिज्ञानी, इतने ही केवलज्ञानी, पंद्रह सौ विक्रिया ऋद्धिधारी, बारह सौ पचास परिग्रह रहित मन पर्यय:ज्ञानी और एक हजार वादी थे । कुल मुनि बीस हजार, पैतालीस हजार आर्यिकाएँ, एक लाख श्रावक, तीन लाख श्राविकाएं तथा असंख्यात देव-देवियां और असंख्यात तिर्यंच थे । इन्होंने आर्यक्षेत्र में अनेक स्थानों पर विहार किया था । आयु का एक मास शेष रह जाने पर विहार बंद कर ये सम्मेदगिरि पर आये और एक हजार मुनियों के साथ प्रतिमायोग धारण कर वैशाख कृष्ण चतुर्दशी के दिन रात्रि के अंतिम समय अश्विनी नक्षत्र में मोक्ष गये । देवों ने निर्वाणकल्याणक मनाया था । महापुराण 69.35, 51-69 दूसरे पूर्वभव में ये जंबूद्वीप के भरतक्षेत्र में वत्स देश की कौशांबी नगरी के राजा पार्थिव और उनकी सुंदरी नामक रानी के सिद्धार्थ नामक पुत्र तथा प्रथम पूर्वभव में अपराजित नामक विमान में अहमिंद्र थे । महापुराण 69.2-4, 16 पद्मपुराण 20.14-17, हरिवंशपुराण 60. 155
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