वर्णीजी-प्रवचन:चारित्रपाहुड - गाथा 29
From जैनकोष
अमनोज्ञे च मनोज्ञ सजीवद्रव्ये अजीवद्रव्ये च ।
न करोति रागद्वेषौ पंचेंद्रियसंवर: भणित: ।।29।।
इस गाथा में 5 इंद्रिय के निरोध की बात कही गई है । इंद्रिय के विषय 5 है―स्पर्शन इंद्रिय का विषय स्पर्श, रसनाइंद्रिय का विषय रस, घ्राणेंद्रिय का विषय गंध, चक्षुइंद्रिय का विषय रूप और कर्णइंद्रिय का विषय शब्द है । ये पांचों विषय यदि मनोज्ञ हैं, आकर्षक हैं तो भी उनमें प्रीति भाव न लाना, बेहोश न होना, उन्ही को सब कुछ न समझना । और यदि वे सभी विषय अमनोज्ञ हैं अरुचिकर हैं, खोटे हैं, दुःख दे सकने वाले हैं तो उसमें भी अरति न करना, द्वेष और ईर्ष्या न करना, यह है 5 इंद्रिय के सम्वरण का उपाय । यदि इष्ट विषय में भी प्रीति गई तो वह इंद्रिय से संबंध भी स्वच्छंद है और उसकी धारा ऐसी बनती है कि इंद्रिय को स्वच्छंदता बढ़ती चली जाती है । तो इन विषयों में रागद्वेष न करना सो पंचेंद्रिय संवरण कहलाता है ।