वर्णीजी-प्रवचन:द्रव्य संग्रह - गाथा 11
From जैनकोष
पुढविजलतेयवाऊ वणफ्फदी विविहथावरेइंदी ।
विगतिगचदुपंचक्खा तस जीवा होंति संखादी ।।11।।
अन्वय―पुढविजलतेयवाऊ वणफ्फदी विविहए इंदा थावरे होंती संखादि विगतिगचदुपंचक्खा तस जीवा होंति ।
अर्थ―पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और वनस्पतिकायरूप नाना एकेंद्रिय जीव स्थावर जीव हैं और शंख, पिपीलिका आदि द्वींद्रिय, त्रींद्रिय, चतुरिंद्रिय और पंचेंद्रिय जीव त्रस जीव हैं ।
प्रश्न 1―पृथ्वीकाय किसे कहते हैं ?
उत्तर―जिनका पृथ्वी ही शरीर हो उन्हें पृथ्वीकाय कहते हैं । जो जीव मरकर पृथ्वी शरीर धारण करने के लिये मोड़े वाली विग्रहगति जा रहा हो, वह उस विग्रहगति वाला जीव भी पृथ्वीकाय है । इसका शुद्ध नाम पृथ्वी जीव है ।
प्रश्न 2―पृथ्वीकाय की कितनी जातियां हैं ?
उत्तर―पृथ्वीकाय की 36 जातियां है―(1) मृत्तिका, (2) बालुका, (3) शर्करा, (4) उपल, (5) शिला, (6) लवण, (7) लोह, (8) ताम्र, (9) रांगा, (10) शीशा, (11) सुवर्ण, (12) चाँदी, (13) वज्र, (14) हड़ताल, (15) हिंगुल, (16) मेनसिल, (17) तूतिया, (18) अंजन (19) प्रवाल, (20) भुड़भुड़, (21) अभ्रक, (22) गोमेद, (23) रुचक, (24) अंक, (25) स्फटिक, (26) लोहित प्रभ, (27) वैडूर्य, (28) चंद्रकांत, (29) जलकांत, (30) सूर्यकांत, (31) गैरिक, (32) चंदनमणि, (33) पन्ना (34) पुखराज, (35) नीलम, (36) मसारगल्लन ।
प्रश्न 3―पृथ्वीकाय जीव के देह की कितनी अवगाहना हैं ?
उत्तर―घनांगुल के असंख्यातवें भाग प्रमाण पृथ्वीकाय जीव के देह की अवगाहना हैं ।
प्रश्न 4―जलकाय किन्हें कहते हैं ?
उत्तर―जिनका जल ही शरीर हो उन्हें जलकाय कहते हैं । जो जीव जलकाय में उत्पन्न होने के लिये मोड़े वाली विग्रहगति से जा रहा है उसे भी जलकाय कहते हैं । इसका शुद्ध नाम जलजीव है ।
प्रश्न 5-―जलकाय की कितनी जातियां है ?
उत्तर―जलकाय की अनेक जातियाँ हैं, जैसे―ओस, तुषार, कुहर, बिंदु, शीकर, शुद्धजल, चंद्रकांत जल, घनोदक, ओला आदि ।
प्रश्न 6―जलकाय जीव के देह की कितनी अवगाहना है ?
उत्तर―घनांगुल के असंख्यातवें भाग प्रमाण जलकाय जीव की अवगाहना होती है ।
प्रश्न 7―अग्निकाय किन्हें कहते हैं ?
उत्तर―जिनका अग्नि ही शरीर हो उन्हें अग्निकाय कहते हैं । जो जीव अग्निकाय में उत्पन्न होने के लिये मोड़े वाली विग्रहगति से जा रहा है उसे भी अग्निकाय कहते हैं । इसका शुद्ध नाम अग्निकाय है ।
प्रश्न 8―अग्निकाय की कितनी जातियाँ हैं ?
उत्तर―अग्निकाय की अनेक जातियां हैं, जैसे―ज्वाला, अंगार, किरण, मुर्मुर, शुद्ध अग्नि (वज्र, बिजली आदि), बड़वानल, नंदीश्वरधूमकुंड, मुकुटानल आदि ।
प्रश्न 9―अग्निकायिक जीव की कितनी अवगाहना है ?
उत्तर―घनांगुल के असंख्यातवें भागप्रमाण अग्निकायिक जीवों की अवगाहना है ।
प्रश्न 10―वायुकाय जीव किन्हें कहते हैं ?
उत्तर―जिनका वायु ही शरीर है उन्हें वायुकाय जीव कहते हैं । जो जीव वायुकाय में उत्पन्न होने के लिये मोड़े वाली विग्रहगति से जा रहा है उसे भी वायुकाय जीव कहते हैं । इसका शुद्ध नाम वायुकाय जीव है ।
प्रश्न 11―वायुकाय जीव कितने प्रकार के होते हैं ?
उत्तर―वायुकाय जीव अनेक प्रकार के होते हैं―जैसे बात, उद्गम, उत्कलि, मंडलि, महान, घन, गुंजा, वातवलय आदि ।
प्रश्न 12―वायुकायिक जीवों की कितनी अवगाहना है ?
उत्तर―घनांगुल के असंख्यातवें भाग प्रमाण वायुकायिक जीवों की अवगाहना है ।
प्रश्न 13―वनस्पतिकाय जीव किन्हें कहते हैं ?
उत्तर―जिनका वनस्पति ही शरीर है उन्हें वनस्पतिकाय जीव कहते हैं । जो जीव वनस्पतिकाय में उत्पन्न होने के लिये मोड़े वाली विग्रहगति से जा रहा है उसे भी वनस्पतिकाय कहते हैं । इस जीव का शुद्ध नाम वनस्पतिकाय जीव है ।
प्रश्न 14―वनस्पतिकाय जीव कितने प्रकार के होते हैं ?
उत्तर―वनस्पतिकाय जीव दो प्रकार के होते है―(1) प्रत्येकवनस्पति, (2) साधारणवनस्पति ।
प्रश्न 15―प्रत्येकवनस्पतिकाय जीव किन्हें कहते हैं ?
उत्तर―जिन वनस्पतिकाय जीवों का शरीर प्रत्येक है अर्थात् एक शरीर का स्वामी एक ही जीव है उन्हें प्रत्येकवनस्पतिकाय जीव कहते हैं ।
प्रश्न 16―साधारणवनस्पतिकायिक जीव किन्हें कहते हैं ?
उत्तर―जिन वनस्पतिकाय जीवों का शरीर साधारण है अर्थात् एक शरीर के स्वामी अनेक जीव हैं उन्हें साधारणवनस्पतिकाय कहते हैं ।
प्रश्न 17―प्रत्येकवनस्पतिकाय जीव के कितने भेद हैं ?
उत्तर―प्रत्येक वनस्पतिकाय के दो भेद हैं―(1) सप्रतिष्ठित प्रत्येकवनस्पति, (2) अप्रतिष्ठित प्रत्येकवनस्पति ।
प्रश्न 18―सप्रतिष्ठित प्रत्येकवनस्पति किन्हें कहते हैं ?
उत्तर―जो प्रत्येकवनस्पति साधारणवनस्पतिकाय जीवोंकरि प्रतिष्ठित हों याने सहित हो उन्हें सप्रतिष्ठित प्रत्येकवनस्पति कहते हैं ।
प्रश्न 19―सप्रतिष्ठित प्रत्येकवनस्पतिकायों की पहिचान क्या है ?
उत्तर―जिनकी शिरा, संधि, पर्व अप्रकट हों, जैसे―जरुवाककड़ी, जरुवातुरई, थोड़े दिन का गन्ना आदि ।
जिनका भंग करने पर समान भंग हो, जैसे―धनंतर के पत्ते, पालक के पत्ते आदि । छेदन करने पर भी जो उग आवें, जैसे आलू आदि ।
जिस वनस्पति का कंद, मूल क्षुद्र शाखा या स्कंध की छाल मोटी हो, जैसे―ग्वारपाठा, मूली, गाजर आदि ।
प्रश्न 20―सप्रतिष्ठित प्रत्येकवनस्पति भक्ष्य है अथवा अभक्ष्य ?
उत्तर―सप्रतिष्ठित प्रत्येकवनस्पति में अनंत साधारणवनस्पति जीव रहते हैं, अत: सप्रतिष्ठित प्रत्येकवनस्पति में अभक्ष्य है ।
प्रश्न 21―साधारणवनस्पति के कितने भेद हैं ?
उत्तर―साधारण वनस्पति के 2 भेद हैं―(1) वादर साधारणवनस्पतिकाय (वादर निगोद), (2) सूक्ष्म साधारणवनस्पतिकाय (सूक्ष्म निगोद) । इन दोनों के भी 2-2 भेद हैं । (1) नित्यनिगोद (2) इतरनिगोद ।
प्रश्न 22―नित्यनिगोद किन्हें कहते हैं ?
उत्तर―जिन जीवों ने निगोद के अतिरिक्त अन्य कोई पर्याय आज तक नहीं पाई उन्हें नित्यनिगोद कहते हैं । ये जीव 2 तरह के हैं―(1) अनादि अनंत नित्यनिगोद, (2) अनादि सांत नित्यनिगोद ।
प्रश्न 23―अनादि अनंत नित्यनिगोद किन्हें कहते हैं ?
उत्तर―जिन्होंने निगोद के अतिरिक्त अन्य कोई पर्याय न आज तक पाई और न कभी पावेंगे उन्हें अनादि अनंत नित्यनिगोद कहते हैं ?
प्रश्न―24 अनादिसांत नित्यनिगोद किन्हें कहते हैं ?
उत्तर―अनादिसांत नित्यनिगोद उन्हें कहते हैं, जिन्होंने निगोद के अतिरिक्त अन्य कोई पर्याय आज तक नहीं पाई, किंतु आगे अन्य पर्याय पा लेंगे याने निगोद से निकल जावेंगे उन्हें अनादि सांत नित्यनिगोद कहते हैं ।
प्रश्न 25―इतरनिगोद किन्हें कहते हैं ?
उत्तर―जो जीव निगोद से निकलकर अन्य स्थावरकायों में या त्रस जीवों में उत्पन्न हो गये थे, किंतु पुन: निगोद में आ गये हैं उन्हें इतरनिगोद कहते हैं ।
प्रश्न 26―वादर और सूक्ष्म भेद क्या अन्य स्थावरकार्यों में भी होता है ?
उत्तर―प्रत्येकवनस्पति में तो वादर सूक्ष्म भेद नहीं होता, क्योंकि वे वादर ही होते हैं । पृथ्वीकाय, जलकाय, अग्निकाय व वनस्पतिकाय―इन चारों के वादर और सूक्ष्म भेद होते हैं ।
प्रश्न 27―प्रत्येकवनस्पतिकाय जीवों की कितनी अवगाहना होती है ?
उत्तर―अंगुल के संख्यातवें भाग से 1000 योजन तक की अवगाहना होती है । 1000 योजन की अवगाहना स्वयंभूरमणसमुद्र में कमल की है ।
प्रश्न 28―साधारणवनस्पतिकाय जीवों की कितनी अवगाहना होती है ?
उत्तर―अंगुल के असंख्यातवें भाग प्रमाण साधारणवनस्पतिकाय अर्थात् निगोद जीवों की अवगाहना होती है ।
प्रश्न 29―स्थावर जीव किन्हें कहते हैं ?
उत्तर―जिन जीवों के एक स्पर्शनइंद्रिय ही होती है और अंगोपांग नहीं होते, उन्हें स्थावर जीव कहते हैं । उक्त सभी पाँचों काय के जीव स्थावर हैं ।
प्रश्न 30―त्रस जीव किन्हें कहते हैं ?
उत्तर―जिन जीवों के स्पर्शन रसना, ये दो, स्पर्शन, रसना, घ्राण ये तीन, स्पर्शन, रसना, घ्राण, चक्षु ये चार अथवा स्पर्शन, रसना, घ्राण, चक्षु और श्रोत्र ये पांच इंद्रियां हो उन्हें त्रस जीव कहते हैं । इसी कारण त्रस जीव चार प्रकार के है―(1) द्वींद्रिय, (2) त्रींद्रिय, (3) चतुरिंद्रिय, और (4) पंचेंद्रिय ।
प्रश्न 31―द्वींद्रिय जीव किन्हें कहते हैं ?
उत्तर―स्पर्शनेंद्रियावरण व रसनेंद्रियावरण कर्म के क्षयोपशम से एवं वीर्यांतराय कर्म के क्षयोपशम से व अंगोपांग नामकर्म के उदय से जिनका दो इंद्रिय वाले कार्यों में जन्म होता है उन्हें द्वींद्रिय कहते हैं―जैसे शंख, लट, केंचुवा, जोक, सीप, कौड़ी आदि ।
प्रश्न 32―द्वींद्रिय जीवों की देह की कितनी अवगाहना है ?
उत्तर―अंगुल के असंख्यातवें भाग से लेकर 12 योजन तक की अवगाहना होती है । 12 योजन की अवगाहना वाला शंख अंतिम स्वयंभूरमण समुद्र में होता है ।
प्रश्न 33―त्रींद्रिय जीव किन्हें कहते हैं ?
उत्तर―स्पर्शनेंद्रियावरण, रसनेंद्रियावरण, घ्राणेंद्रियावरण के क्षयोपशम से तथा वीर्यांतराय के क्षयोपशम से एवं अंगोपांग नामकर्म के उदय से तीन इंद्रिय वाले काय में जिनका जन्म होता है वे त्रींद्रिय जीव कहलाते हैं । जैसे चींटी, खटमल, बिच्छू, जूं आदि ।
प्रश्न 34―त्रींद्रिय जीवों की कितनी अवगाहना है ?
उत्तर―त्रींद्रिय जीवों की अवगाहना घनांगुल के असंख्यातवें भाग से 3 कोश प्रमाण तक होती है । तीन कोश की अवगाहना वाला बिच्छू अंतिम स्वयंभूरमण द्वीप में पाया जाता है ।
प्रश्न 35―चतुरिंद्रिय जीव किन्हें कहते हैं ?
उत्तर―स्पर्शनेंद्रियावरण, रसनेंद्रियावरण और चक्षुरिंद्रियावरण के क्षयोपशम से तथा वीर्यांतराय के क्षयोपशम से एवं अंगोपांग नामकर्म के उदय से जिन जीवों का चार इंद्रिय वाले काय से जन्म होता है उन्हें चतुरिंद्रिय कहते हैं । जैसे―ततईया, मक्खी, मच्छर, भौंरा टिड्डी, तितली आदि ।
प्रश्न 36―चतुरिंद्रिय जीवों की कितनी अगाहना होती है ?
उत्तर―चतुरिंद्रिय जीवों की अवगाहना घनांगुल के असंख्यातवें भाग से लेकर 1 योजन तक की होती है । 1 योजन की अवगाहना वाला भ्रमर अंतिम (स्वयंभूरमणनामक) द्वीप में पाया जाता है ।
प्रश्न 37―पंचेंद्रिय जीव के कितने भेद हैं ?
उत्तर―पंचेंद्रिय जीव 2 प्रकार के हैं―(1) असंज्ञीपंचेंद्रिय, (2) संज्ञी । असंज्ञी पंचेंद्रिय तो केवल तिर्यग्गति में ही होते हैं, किंतु संज्ञी पंचेंद्रिय जीव चारों गतियों में होते हैं । नरकगति, मनुष्यगति और देवगति में ये संज्ञी पंचेंद्रिय जीव ही होते हैं ।
प्रश्न 38―असंज्ञी किन्हें कहते हैं ?
उत्तर―जिनके मन न हो उन्हें असंज्ञी कहते हैं । मन आलंबन से ही हित अहित का विचार और हेयोपादेय के त्याग और ग्रहण की प्रवृत्ति होती है । (एकेंद्रिय, द्वींद्रिय, त्रींद्रिय, चतुरिंद्रिय जीव भी मात्र असंज्ञी होते हैं) ।
प्रश्न 39―संज्ञी जीव किन्हें कहते हैं ?
उत्तर―जिनके मन हो जो शिक्षा, उपदेश ग्रहण कर सकें । (संज्ञी जीव ही सम्यक्त्व उत्पन्न कर सकता है) ।
प्रश्न 40―पंचेंद्रिय जीव किन्हें कहते हैं ?
उत्तर―स्पर्शनेंद्रियावरण, रसनेंद्रियावरण, घ्राणेंद्रियावरण, चक्षुरिंद्रियावरण और श्रोत्रेंद्रियावरण के क्षयोपशम से एवं वीर्यांतराय के क्षयोपशम से तथा अंगोपांगनामा नामकर्म के उदय से पाँच इंद्रिय वाले काय में जिन जीवों का जन्म होता है उन्हें पंचेंद्रिय जीव कहते हैं । इनमें जिन जीवों के नोइंद्रियावरण का भी क्षयोपशम होता है उन्हें संज्ञी पंचेंद्रिय कहते हैं और जिनके नोइंद्रियावरण का क्षयोपशम नहीं होता है उन्हें असंज्ञीपंचेंद्रिय कहते हैं ।
प्रश्न 41―पंचेंद्रिय जीवों की कितनी अवगाहना है ?
उत्तर―घनांगुल के असंख्यातवें भाग से 1000 योजन तक । 1000 योजन लंबा और 500 योजन चौड़ा व 250 योजन मोटा देह वाला महामत्स्य स्वयंभूरमण नामक अंतिम समुद्र में पाया जाता है ।
प्रश्न 42―क्या सभी जीव त्रस और स्थावरों में ही पाये जाते हैं ?
उत्तर―मुक्त जीव न त्रस हैं और न स्थावर । वे त्रस और स्थावर की समस्त योनियों से मुक्त हो गये हैं ।
प्रश्न 43―त्रस स्थावर जीवों में जन्म क्यों होता है ?
उत्तर―इंद्रिय सुख में आसक्त होने से और इसी कारण त्रस स्थावर जीवों की हिंसा होने से इन जीवों में जन्म होता है ।
प्रश्न 44―इंद्रिय सुख की आसक्ति क्यों होती है ?
उत्तर―शुद्धचैतन्यमात्र निजपरमात्मत्व की भावना से उत्पन्न होने वाले परम अतींद्रिय सुख का जिन्हें स्वाद नहीं है उनके इंद्रिय सुखों में आसक्ति होती है । अत: जिनके संसारजन्म से निवृत्त होने की वांछा हो उन्हें अनादि अनंत अहेतुक निज चैतन्यस्वरूप कारणपरमात्मा की भावना करनी चाहिये ।
अब त्रस, स्थावर जीवों का ही 14 जीवसमासों के द्वारा और विवरण करते हैं ।