वर्णीजी-प्रवचन:द्रव्य संग्रह - गाथा 10
From जैनकोष
अणुगुरुदेहपमाणो उवसंहारप्पसप्पदो चेदा ।
असमुहदो ववहारा णिच्चयणयदो असंखदेसो वा ।।10।।
अन्वय―चेदा ववहारा असमुहदो उवसंहारप्पसप्पदो अणुगुरुदेहपमाणो, वा णिच्चयणयदो असंखदेसो ।
अर्थ―आत्मा व्यवहारनय से समुद्घात के सिवाय अन्य सब समय संकोच और विस्तार के कारण अपने छोटे-बड़े शरीर के प्रमाण है और निश्चयनय से असंख्यात प्रदेशों का धारक है ।
प्रश्न 1―समुद्घात में यह जीव शरीर के प्रमाण क्यों नहीं रहता?
उत्तर―जिन कारणों से अथवा जिन प्रयोजनों के लिये समुद्घात होता है उनकी सिद्धि शरीर से भी बाहर आत्मप्रदेशों के रहने में है ।
प्रश्न 2―समुद्घात किसे कहते हैं?
उत्तर―अपने मूल शरीर को न छोड़कर और तैज सशरीर और कार्माणशरीर के प्रदेशों सहित आत्मा के प्रदेशों का शरीर से बाहर निकलना समुद्घात है ।
प्रश्न 3―समुद्घात के कितने प्रकार हैं ?
उत्तर―समुद्घात के 7 प्रकार हैं―(1) वेदनासमुद्घात, (2) कषायसमुद्घात, (3) विक्रियासमुद᳭घात, (4) मारणांतिकसमुद᳭घात, (5) तैजससमुद्घात, (6) आहारकसमुद᳭घात और (7) केवलिसमुद्घात ।
प्रश्न 4―वेदनासमुद᳭घात किसे कहते हैं ?
उत्तर―तीव्र वेदना के कारण मूल शरीर को न छोड़कर आत्मप्रदेशों का बाहर फैल जाना वेदनासमुद्घात है ।
प्रश्न 5―इस समुद्घात से क्या कोई लाभ भी होता है ?
उत्तर―वेदनासमुद᳭घात में जो आत्मप्रदेश तैजसकार्माणशरीर सहित बाहर फैलते हैं यदि उनसे किसी औषधि का स्पर्श हो जाये तो वेदना शांत हो सकती है । औषधि का स्पर्श ही हो, ऐसा नियम नहीं है । वेदनासमुद्घात तो तीव्रवेदना के कारण हो जाता है ।
प्रश्न 6―वेदनासमुद᳭घात में आत्मप्रदेश कितनी दूर तक फैल जाते है ?
उत्तर―देहप्रमाण से तिगुने प्रमाण बाहर प्रदेश जाते हैं । वेदनासमुद᳭घात से प्राय: प्राणी शरीर से निरोग हो जाया करते हैं ।
प्रश्न 7―कषायसमुद᳭घात किसे कहते हैं ?
उत्तर―तीव्र कषाय का उदय हो जाने से पर के घात के लिये मूलशरीर को न छोड़कर आत्मप्रदेशों का बाहर निकल जाना कषायसमुद᳭घात है ।
प्रश्न 8―कषायसमुद्घात से क्या पर का घात हो जाता है ?
उत्तर―इसका नियम नहीं है ।
प्रश्न 9―कषायसमुद᳭घात में आत्मप्रदेश कितनी दूर तक फैल जाते हैं ?
उत्तर―देहप्रमाण से तिगुने प्रमाण बाहर प्रदेश जाते हैं ।
प्रश्न 10―विक्रियासमुद्घात किसे कहते हैं ?
उत्तर―शरीर या शरीर का अंग बढ़ाने के लिये अथवा अन्य शरीर बनाने के लिये आत्मप्रदेशों का मूल शरीर न छोड़कर बाहर निकल जाना विक्रियाससुद्घात है ।
प्रश्न 11―विक्रियासमुद्घात किनके होता है ?
उत्तर―विक्रियासमुद्घात देव व नारकियों के तो होता ही है, किंतु विक्रियाऋद्धिधारी मुनीश्वरों के भी विक्रियासमुद्घात हो जाता है ।
प्रश्न 12―अन्य शरीर बनाने पर आत्मा अनेक क्यों नहीं हो जाते ?
उत्तर―अन्य शरीर बनाने पर भी मूलशरीर व अन्य शरीर तथा इसके अंतराल में उसी एक आत्मा के प्रदेश फैले हुए होते हैं, अत: आत्मा एक ही है । हां, आत्मप्रदेशों का विस्तार वहाँ तक निरंतर है ।
प्रश्न 13―मूलशरीर और उत्तरशरीर में क्रियायें तो अलग-अलग होती हैं, इसलिये क्या उपयोग अनेक मानने पड़ेंगे ?
उत्तर―नहीं, एक ही उपयोग से त्वरितगति होने के कारण दोनों शरीर में क्रियायें होती रहती हैं ।
प्रश्न 14―विक्रियासमुद᳭घात में आत्मप्रदेश कहां तक फैल जाते हैं ?
उत्तर―जिसका जितना विक्रियाक्षेत्र है और उसमें भी जितनी दूर तक विक्रिया की जा रही है उतनी दूर तक आत्मप्रदेश फैल जाते हैं ।
प्रश्न 15―मारणांतिक समुद᳭घात किसे कहते हैं ?
उत्तर―मरण समय में मूलशरीर को न छोड़कर जहाँ कहीं भी आयु बांधी हो वहाँ के क्षेत्र का स्पर्श करने के लिये आत्मप्रदेशों का बाहर निकल जाना मारणांतिक समुद्घात है । मारणांतिक समुद᳭घात एक दिशा को प्राप्त होता है ।
प्रश्न 16―मारणांतिक समुद्घात में बाहर प्रदेश निकलने के बाद पुन: मूलशरीर में आते हैं अथवा नहीं ?
उत्तर―मारणांतिक समुद्घात में जन्मक्षेत्र को स्पर्शकर आत्मप्रदेश अवश्य मूलशरीर में आते हैं । पश्चात् सर्वप्रदेशों से आत्मा निकलकर जन्मक्षेत्र में पहुंचकर नवीन शरीर अपना लेता है ।
प्रश्न 17―मारणांतिकसमुद्घात क्या सभी मरने वाले जीवों के होता है या किसी-किसी के ?
उत्तर―मारणांतिकसमुद्घात उन्हीं जीवों के हो सकता है जिन्होंने अगले भव की पहले से आयु बांध ली है और जिनके एतद्विषयक विलक्षण आतुरता होती है । इस समुद᳭घात की अपेक्षा त्रस जीव भी त्रसनाली से बाहर पाये जा सकते हैं ।
प्रश्न 18―तैजससमुद्घात किसे कहते हैं ?
उत्तर―संयमी महामुनि के विशिष्ट दया उत्पन्न होने पर अथवा तीव्र क्रोध उत्पन्न होने पर उनके दायें अथवा बायें कंधे से तैजसशरीर का एक पुतला निकलता है । उसके साथ आत्मप्रदेशों का बाहर निकलना तैजससमुद्घात है ।
प्रश्न 19―तैजससमुद᳭घात कितने तरह का होता है ?
उत्तर―तैजससमुद्घात दो तरह का होता है―(1) शुभ तैजससमुद्घात्, (2) अशुभतैजससमुद्घात ।
प्रश्न 20―शुभ तैजससमुद्घात कब और किसलिये निकलता है ?
उत्तर―जब लोक को व्याधि, दुर्भिक्ष आदि से पीड़ित देखकर तैजस ऋद्धिधारी संयमी महामुनि के कृपा उत्पन्न होती है तब मुनि के दाहिने कंधे से पुरुषाकार तेजस्वरूप एक पुतला निकलता है । वह व्याधि और दुर्भिक्ष आदि उपद्रव को नष्ट करके फिर मूलशरीर में प्रवेश कर जाता है । इसे शुभ तैजसशरीर कहते हैं ।
प्रश्न 21―शुभ तैजसशरीर का स्वरूप कैसा है ?
उत्तर―शुभ तैजसशरीर श्वेतरूप का सौम्य आकार वाला पुरुषाकार 12 योजन तक का विस्तार वाला तेजोमय होता है ।
प्रश्न 22―अशुभ तैजससमुद्घात कब और किसलिये निकलता है ?
उत्तर―जब मन को अनिष्टकारी किसी कारण व उपद्रव को देखकर तैजस ऋधिधारी महामुनि के क्रोध उत्पन्न होता है तब सोची हुई विरुद्ध वस्तु को भस्म करने के लिये मुनि के बायें कंधे से तैजसशरीरमय पुतला निकलता है यह विरुद्ध वस्तु को भस्म करके और फिर उस ही संयमी मुनि को भस्म करके नष्ट हो जाता है । इसे अशुभतैजसशरीर कहते हैं ।
प्रश्न 23―अशुभतैजसशरीर का स्वरूप कैसा है ?
उत्तर―अशुभतैजसशरीर सिंदूर की तरह लाल रंग का, बिलाव के आकार वाला, 12 योजन लंबा, मूल में सूच्यंगुल के संख्यातभागप्रमाण चौड़ा और अंत में 9 योजन चौड़ा तेजोमय होता है ।
प्रश्न 24―आहारकसमुद्घात किसे कहते हैं ?
उत्तर―किसी तत्त्व में संदेह होने पर संदेह की निवृत्ति के अर्थ आहारकऋद्धिधारी महामुनि के मस्तक से एक हाथ का पुरुषाकार श्वेत रंग का केवलज्ञानी प्रभु के दर्शन के लिये आहारक शरीर निकलता है, उसके साथ आत्मप्रदेशों का बाहर निकलना आहारकसमुद्घात है । यह आहारकशरीर सर्वज्ञदेव के दर्शन कर मूलशरीर में प्रविष्ट हो जाता है । सर्वज्ञ प्रभु के दर्शन से तत्त्वसंदेह दूर हो जाता है । यह समुद्घात एक ही दिशा को प्राप्त होता है ।
प्रश्न 25―केवलिसमुद्घात किसे कहते हैं ?
उत्तर―आयुकर्म की स्थिति अत्यल्प रहने पर और शेष 3 अघातिया कर्मों की स्थिति अधिक होने पर सयोगकेवली भगवान के आत्मप्रदेशों का दंड, कपाट, प्रतर, लोकपूरण के प्रकार से बाहर निकलना होता है वह केवलिसमुद्घात है ।
प्रश्न 26―केवलिसमुद्घात क्या सभी सयोगकेवली भगवान के होता है या किसी-किसी के?
उत्तर―जिन मुनिराजों के 6 माह आयु शेष रहने पर, केवलज्ञान उत्पन्न होता है उन सयोगकेवलियों के केवलिसमुद्घात होता है । इसके अतिरिक्त कुछ आचार्यों के अन्य भी मत हैं । निष्कर्ष यह समझिये कि कुछ बिरलों को छोड़ सभी सयोगकेवलियों के समुद्घात होता है ।
प्रश्न 27―केवलिसमुद्घात में दंडसमुद्घात किस तरह होता है ?
उत्तर―सयोगकेवली यदि आसीन हों तो आसन प्रमाण याने देह के त्रिगुण विस्तार प्रमाण और यदि खड्गासन से स्थित हों तो देह विस्तार प्रमाण चौड़े आत्मप्रदेश निकलते हैं और ऊपर से नीचे तक वातवलयों के प्रमाण से कम 14 राजू लंबे फैल जाते हैं ।
प्रश्न 28―कपाटसमुद्घात किस तरह होता है ?
उत्तर―दंडसमुद्घात के अनंतर अगल बगल थोड़े हो जाते हैं । यदि भगवान पूर्वाभिमुख हों तो ऊपर, मध्य में, नीचे सर्वत्र वातवलयप्रमाण से कम 7-7 राजू प्रमाण आत्मप्रदेश फैल जाते हैं और यदि भगवान उत्तराभिमुख हों तो वातवलय प्रमाण से हीन ऊपर तो एक राजू, ब्रह्मक्षेत्र में 5 राजू, मध्य में 1 राजू व नीचे 7 राजू प्रमाण चौड़े हो जाते हैं ।
प्रश्न 29―प्रतरसमुद्घात किस प्रकार होता है ?
उत्तर―इस समुद्घात में सामने व पीछे जितना लोकक्षेत्र बचा है उसमें वातवलय प्रमाण से हीन सर्वलोक में फैल जाते हैं ।
प्रश्न 30―लोकपूरण समुद्घात में क्या होता है ?
उत्तर―इसमें आत्मप्रदेश वातवलय के क्षेत्र में भी फैलकर पूरे लोकप्रमाण प्रदेश हो जाते हैं ।
प्रश्न 31―लोकपूरण समुद्घात के बाद प्रवेश-विधि किस प्रकार से है ?
उत्तर―लोकपूरण समुद्घात के बाद लौटकर प्रतरसमुद्घात होता है, फिर कपाट समुद्घात, फिर दंडसमुद्घात, इसके बाद मूलशरीर में प्रवेश हो जाता है ।
प्रश्न 32―समुद्घातों में समय कितना लगता है ?
उत्तर―केवलिसमुद्घात में तो 8 समय लगता है और शेष के 6 समुद्घातों में अंतर्मुहूर्त समय लगता है ।
प्रश्न 33―केवलिसमुद्घात में 8 समय कैसे लगता है ?
उत्तर―दंड में 1, कपाट में 1, प्रतर में 1, लोकपूरण में 1, फिर लौटते समय प्रतर में 1, कपाट में 1, दंड में 1, फिर प्रवेश में 1, इस प्रकार आठ समय लगता है ।
प्रश्न 34―केवलिसमुद्घात से क्या फल होता है ?
उत्तर―केवलिसमुद्घात होने से शेष 3 अघातिया कर्मों की स्थिति घटकर आयुस्थितिप्रमाण स्थिति रह जाती है ।
प्रश्न 35―केवलिसमुद्घात होने का कारण क्या है ?
उत्तर―केवलिसमुद्घात स्वयं होता है, इसमें निमित्त कारण अघातिया कर्मों की स्थिति पूर्वोक्त प्रकार से विषम शेष रह जाना है ।
प्रश्न 36―समुद्घात के सिवाय अन्य समयों में आत्मा किस प्रमाण है ?
उत्तर―समुद्घात के सिवाय अन्य समयों में आत्मा व्यवहारनय से अपने-अपने छोटे या बड़े देह प्रमाण है ।
प्रश्न 37―आत्मा देहप्रमाण ही क्यों है ?
उत्तर―आत्मा अनादि से निरंतर देह धारण करता चला आया है उनमें यदि बड़े देह से छोटे देह में आता है तो संकोच स्वभाव के कारण उस छोटे देह के प्राण हो जाता है और यदि छोटे देह से बड़े देह में आता है तो विस्तार स्वभाव के कारण उस बड़े देह प्रमाण हो जाता है ।
प्रश्न 38―देह से सर्वथा मुक्त होने पर आत्मा कितने प्रमाण रहता है ?
उत्तर―जिस देह से मुक्त हुआ उस देह प्रमाण यह मुक्त आत्मा मुक्ति अवस्था में रहता है ।
प्रश्न 39―मुक्त होने पर आत्मा ज्ञान की तरह प्रदेशों से भी सर्वलोक में क्यों नहीं फैल जाता ?
उत्तर―देह से मुक्त होने के बाद संकोच विस्तार का कोई कारण न होने से आत्मा जिस प्रमाण था उस ही प्रमाण रह जाता है । ज्ञान भी सर्वलोक में नहीं फैलता, किंतु ज्ञान आत्मप्रदेशों में ही रहकर समस्त लोक अलोक के आकार ज्ञानरूप से परिणम जाता है ।
प्रश्न 40―किस व्यवहारनय से आत्मा देह प्रमाण है ?
उत्तर―अनुपचरित असद्भूतव्यवहारनय से आत्मा देह प्रमाण है । यहाँ देह और आत्मा का एकक्षेत्रावगाह है इसलिये अनुपचरित है । देह का निज क्षेत्र देह में है, आत्मा का निज क्षेत्र आत्मा में है, इस प्रकार आत्मा व देह का परस्पर अत्यंताभाव होने से असद्भूत है । यह आकार पर्याय है, इसलिये व्यवहार है ।
प्रश्न 41―निश्चयनय से आत्मा किस प्रमाण है ?
उत्तर―निश्चयनय से आत्मा अपने असंख्यात प्रदेश प्रमाण है । यह प्रमाणता सर्वत्र सर्वदा इतनी ही रहती है ।
प्रश्न 42―शरीर की अवगाहना कम से कम कितनी हो सकती है ?
उत्तर―कम से कम शरीर की अवगाहना उत्सेधांगुल के असंख्यातवें भाग प्रमाण होती है । उत्सेधांगुल प्राय: आजकल अंगुल प्रमाण होता है । इतना ही शरीर लब्ध्यपर्याप्तक सूक्ष्मनिगोदिया का होता है ।
प्रश्न 43―शरीर की अवगाहना बड़ी से बड़ी कितनी हो सकती है ?
उत्तर―शरीर की उत्कृष्ट अवगाहना एक हजार याजन प्रमाण हो सकती है । इतना शरीर स्वयंभूरमण समुद्र में महामत्स्य का होता है ।
प्रश्न 44―मध्यम अवगाहना कितने प्रकार की है ?
उत्तर―जघन्य अवगाहना से ऊपर और उत्कृष्ट अवगाहना से नीचे असंख्यात प्रकार की मध्यम अवगाहना होती है ।
प्रश्न 45―यह आत्मा देह में ही क्यों बसता चला आया है ?
उत्तर―देह में ममत्व होने के कारण देहों में बसता चला आया है । आयु स्थिति के क्षय के कारण किसी एक देह में चिरस्थायी नहीं रह सकता है तथापि देहात्मबुद्धि होने के कारण त्वरित अन्य देह को धारण कर लेता है । जन्म मरण के दुःख और देह के संबंध से होने वाले क्षुधा, तृषा, इष्टवियोग, अनिष्टसंयोग, वेदना आदि के दुःख इस देहात्मबुद्धि के कारण ही भोगने पड़ते हैं ।
प्रश्न 46―देह से मुक्त होने के क्या उपाय हैं ?
उत्तर―देह से ममत्व हटावे, देह में आत्मबुद्धि न करना देह में मुक्त होने का मूल उपाय है ।
प्रश्न 47―देहात्मबुद्धि दूर करने के लिये क्या पुरुषार्थ करना चाहिये ?
उत्तर―मैं अशरीर, अमूर्त, अकर्ता, अभोक्ता, शुद्ध चैतन्यमात्र हूं―इस प्रकार अपना अनुभव करे । इस परम पारिणामिक भावमय निज शुद्ध आत्मा के अवलंबन से जीव पहिले मोहभाव से मुक्त होता है, पश्चात् कषायों से मुक्त होता है, इनके साथ ही मोहनीय कर्म का क्षय हो जाता है । तदनंतर ज्ञानावरण, दर्शनावरण व अंतराय का क्षय एवं अनंतज्ञान, अनंतदर्शन व अनंतशक्ति का आविर्भाव हो जाता है । तत्पश्चात् शेष अघातिया कर्मों से व देह से सर्वथा मुक्त हो जाता है । इस सबका एक मात्र उपाय अनादि अनंत अहेतुक चैतन्य मात्र निज कारणपरमात्मा का अवलंबन है ।
इस प्रकार “आत्मा स्वदेह प्रमाण है” इस अर्थ के व्याख्यान का अधिकार समाप्त करके जीव संसारस्थ है इसका वर्णन करते हैं―