वर्णीजी-प्रवचन:द्रव्य संग्रह - गाथा 26
From जैनकोष
एयपदेसोवि अणू णाणाखंधप्पदेसदो होदि ।
बहुदेसो उवयारा तेण य काओ भणंति सव्वण्हू ।।26।।
अन्वय―एयपदेसोवि अणू णाणाखंधप्पदेसदो बहुदेसो उवयारा होदि, तेण य सव्वण्हू उवयारा काओ भणंति ।
अर्थ―एक प्रदेश वाला होने पर भी अनेक स्कंधों के प्रदेशों की दृष्टि से बहुप्रदेशी उपचार से होता है और इस ही कारण सर्वज्ञ देव परमाणु को उपचार से अस्तिकाय कहते हैं ।
प्रश्न 1―परमाणु का आकार क्या है?
उत्तर―परमाणु एक प्रदेशमात्र है, अत: उसका व्यक्त आकार तो नहीं है, अव्यक्त आकार है । वह आकार षट्कोण है । इसी कारण सब ओर से परमाणुवों का बंध होने पर स्कंध में छिद्र या अंतर नहीं होता ।
प्रश्न 2―परमाणु कितने प्रकार का हैं?
उत्तर―परमाणु व्यंजन पर्याय से तो एक ही प्रकार का है किंतु गुणपर्याय की अपेक्षा 200 प्रकार के होते हैं ।
प्रश्न 3―परमाणु 200 प्रकार के किस तरह होते हैं?
उत्तर―परमाणु में रूप की पांच पर्यायों में से कोई एक, रस की पांच पर्यायों में से कोई एक, गंध की दो पर्यायों में से कोई एक, स्पर्श की 4 पर्यायों में से 2 याने स्निग्ध रूक्ष में एक व शीत उष्ण में एक । इस प्रकार 5524=200 प्रकार हो जाते ।
प्रश्न 4―परमाणु शुद्ध होकर फिर अशुद्ध (स्कंध रूप में) क्यों हो जाता है ?
उत्तर―परमाणु के अशुद्ध होने का कारण स्निग्ध रूक्ष परिणमन है । शुद्ध होने पर अर्थात् केवल एक परमाणु रह जाने पर भी स्निग्ध या रूक्ष परिणमन रहता ही है, अत: स्निग्ध या रूक्ष परिणमन रूप कारण के होने से स्कंध रूप कार्य का होना याने अशुद्ध होना युक्त हो जाता है ।
प्रश्न 5-―शुद्ध जीव फिर अशुद्ध क्यों नहीं होता है?
उत्तर―जीव के अशुद्ध होने का कारण रागद्वेष है । यह रागद्वेष चारित्र गुण का विकार है । जीव के शुद्ध होने पर रागद्वेष का अत्यंत अभाव (क्षय) हो जाता है और चारित्र गुण का स्वभावरूप स्वच्छ परिणमन हो जाता है । इस तरह अशुद्ध होने के कारणभूत राग द्वेष के न पाये जानें से शुद्ध जीव फिर अशुद्ध नहीं हो सकता ।
प्रश्न 6―किस व्यवहारनय से परमाणु को अस्तिकाय कहा गया है?
उत्तर―अनुपचरित अशुद्ध सद्भूत शक्तिरूप व्यवहारनय से परमाणु को अस्तिकाय कहा जाता है, क्योंकि परमाणु अशुद्ध स्कंधरूप होने की अनुपचरित शक्ति रखता है ।
प्रश्न 7―द्वणुक, त्र्यणुक आदि स्कंध आकाश के कितने प्रदेशों में रहते हैं?
उत्तर-―एक, दो आदि स्कंध प्रदेशों आदि में कितने भी कम में रह सकते हैं । इसका कारण परमाणुवों का परमाणु में अप्रतिघात शक्ति का होना है ।
प्रश्न 8―परमाणु कैसे उत्पन्न होता है?
उत्तर-―परमाणु मनुष्य आदि किसी के चेष्टा से उत्पन्न नहीं होता है । वह तो स्वयं स्कंध से अलग होकर परमाणु रह जाता है । परमाणु की उत्पत्ति भेद से ही होती है अर्थात् स्कंध से अलग होने से ही होती है ।
प्रश्न 9―स्कंध कैसे बनता है?
उत्तर―स्कंध भेद से भी बनता है और संघात अर्थात् मेल से भी बनता है । कुछ स्कंधांशों का भेद होने से और कुछ स्कंधांशों का संघात होने से अर्थात् भेदसंघात से भी बनता है ।
प्रश्न 10―स्कंध भी भेद से बनता है तो क्या परमाणु और इस स्कंध के बनने का एक ही उपाय है?
उत्तर―परमाणु बनने का भेद तो अंतिम भेद है, परंतु स्कंध बनने का भेद अंतिम नहीं अर्थात् वहाँ अनेक परमाणुवों के स्कंध का भेद होने पर भी अनेक परमाणुवों का स्कंध रहता है । जैसे 500 परमाणुवों के स्कंध का ऐसा भाग हो जाये कि एक स्कंधांश 300 परमाणुओं का रह जाये व दूसरा स्कंध 200 परमाणुवों का रह जाये इत्यादि ।
प्रश्न 11―इस परमाणु को जानकर हमें क्या शिक्षा लेनी चाहिये?
उत्तर―जैसे एक परमाणु निरुपद्रव है उसके साथ अन्य परमाणुओं का संयोग बंध होने से उसे नाना स्थितियों में गुजरना पड़ता है । इसी तरह मैं भी एक रहूं तो निरुपद्रव हूँ । परद्रव्य के संयोग, बंध उपयोग से ही अनेक योनियों में गुजरना पड़ता है । अत: उपद्रव से निवृत्त होने के लिये अपने एकत्व का ध्यान करना चाहिये ।
अब प्रदेश का लक्षण बताते हैं―