वर्णीजी-प्रवचन:द्रव्य संग्रह - गाथा 25
From जैनकोष
होंति असंखा जीवे धम्माधम्मे अणंत आयासे ।
मुत्ते तिविह पदेसा कालस्सेगो ण तेण सो काओ ।।25।।
अन्वय―जीवे धम्माधम्मे असंखा, आयासे अणंत, मुत्ते तिविह पदेसा होंति । कालस्सेगो तेण सो काओ णत्थि ।
अर्थ―जीवद्रव्य, धर्मद्रव्य, अधर्मद्रव्य में असंख्यात प्रदेश हैं, आकाश में अनंत प्रदेश हैं और मूर्त (पुद्गल) द्रव्य में संख्यात, असंख्यात व अनंत ऐसे तीनों प्रकार के प्रदेश होते हैं । काल द्रव्य के एक ही प्रदेश है इस कारण यह अस्तिकाय नहीं है ।
प्रश्न 1―जीव, धर्म, अधर्मद्रव्य में बराबर के असंख्यात प्रदेश हैं या कम अधिक?
उत्तर―इन तीनों द्रव्यों में बराबर के प्रमाण के प्रदेश हैं, कम या अधिक नहीं । यहाँ जीव से एक जीव ग्रहण करना चाहिये । प्रत्येक जीव में असंख्यात प्रदेश होते हैं ।
प्रश्न 2―ये असंख्यात प्रदेश ऊनी संख्या के हैं या पूरी संख्या के?
उत्तर―ये असंख्यात पूरी संख्या पर पूरे होते हैं 2-4-6 आदि संख्या को जिनमें 2 का भाग जाकर नीचे कुछ शेष न बचे ऐसी परिमाण को पूरी संख्या वाला परिमाण कहते हैं ।
प्रश्न 3―जीवद्रव्य में असंख्यात प्रदेश कैसे विदित हो सकते हैं?
उत्तर―जीवद्रव्य लोकपूरक समुद᳭धात में पूरा फैल पाता है । इस समुदधात में जीव लोक के सब प्रदेशों में ही रहता वहाँ लोक के एक-एक प्रदेश पर जीव का एक-एक प्रदेश हैं और लोक के प्रदेश असंख्यात हैं, यों जीव द्रव्य भी असंख्यात प्रदेशी है । निश्चयनय से जीव अखंड प्रदेशी है । उसमें प्रदेश संख्या का विभाव व्यवहारनय से किया है ।
प्रश्न 4―धर्मद्रव्य व अधर्मद्रव्य में असंख्यात प्रदेश क्यों होते हैं?
उत्तर―धर्मद्रव्य व अधर्मद्रव्य केवल लोकाकाश में सबमें व्याप्त हैं, अत: ये दोनों द्रव्य भी असंख्यात प्रदेश वाले हैं ।
प्रश्न 5―आकाश में अनंत प्रदेश क्यों हैं?
उत्तर―आकाश निःसीम है इसका कहीं भी अंत नहीं, अत: आकाश के अनंत प्रदेश निर्बाध सिद्ध हैं ।
प्रश्न 6―पुद्गल में तीन प्रकार के परिमाण के प्रदेश क्यों हैं?
उत्तर―पुद्गल स्कंध कोई संख्यात परमाणुवों का है कोई असंख्यात परमाणुवों का है, कोई अनंत परमाणुवों का है, अत: पुद्गल को तीन प्रकार के परिमाण वाले प्रदेशयुक्त कहा है । इसके प्रदेश परिमाण, पूर्वोक्त तीन द्रव्यों की तरह आकाश क्षेत्र घेरने की अपेक्षा से नहीं लगाना चाहिये ।
प्रश्न 7―पुद्गल के प्रदेश आकाशक्षेत्र की अपेक्षा से क्यों नही?
उत्तर―यदि आकाश क्षेत्र घेरने की अपेक्षा से पुद्गल प्रदेश माने जावें तो केवल असंख्यात प्रदेशी ही पुद्गल स्कंध समा सकते हैं अन्य कोई स्कंद भी नहीं होंगे । सो ऐसा प्रत्यक्षविरुद्ध हैं और ऐसा मानने पर जीव द्रव्य अशुद्ध भी सिद्ध नहीं हो सकता ।
प्रश्न 8―पुद्गल स्कंध तो पर्याय है वास्तविक पुद्गल द्रव्य में कितने प्रदेश हैं?
उत्तर―वास्तव में पुद्गलद्रव्य परमाणु का नाम है उसमें प्रदेश एक ही होता है, किंतु उसमें स्कंधरूप से परिणति हो जाने का सामर्थ्य है अत: वह प्रदेशी माना है । यह तीन प्रकार से प्रदेशपरिमाण पुद्गल स्कंधों का कहा है ।
प्रश्न 9―जीवद्रव्य जब लोकभर में फैले तभी क्या असंख्यात प्रदेश में रहता है, अन्य समय क्या कम क्षेत्र में रहता है?
उत्तर―जीवद्रव्य सदा असंख्यात प्रदेशों में रहता है । छोटी अवगाहना के देह में भी हो तो वह देह भी आकाश के असंख्यात प्रदेशों में विस्तृत होता है । सारा लोक भी असंख्यात प्रदेश वाला है और छोटी देहावगाहना जितने क्षेत्र को घेरता है वह भी असंख्यात प्रदेश प्रमाण है । असंख्यात असंख्यात प्रकार के होते हैं ।
प्रश्न 10―कालद्रव्य के एक प्रदेशमात्रपने की सिद्धि कैसे है?
उत्तर―यदि कालद्रव्य एक प्रदेशमात्र न हो तो समय पर्याय की उत्पत्ति नहीं हो सकती । एक द्रव्याणु याने परमाणु एक कालाणु से दूसरे कालाणु पर मंदगति से गमन करे वहाँ समय पर्याय की प्रसिद्धि है । यदि कालद्रव्य बहुप्रदेशी होता तो एक समय की निष्पत्ति नहीं होती ।
अब एक प्रदेशी होने पर भी पुद्गल परमाणु के अस्तिकायपना सिद्ध करते हैं―