वर्णीजी-प्रवचन:भावपाहुड - गाथा 17
From जैनकोष
असुईबीहत्थेहिं य कलिमल वहुलाहि गब्भवसहीहिं ।
वसिओसि चिरं कालं अणेयजणणीण मुणिपवर ।।17।।
(27) कुयोनियों से निकलकर अनेक बार गर्भ में आया―हे मुनि श्रेष्ठ, पहले अनेक बार भावरहित मुनिलिंग धारण करके खोटे देव, खोटी योनियों में अनेक बार उत्पन्न हुआ अथवा अब तक अनंतानंत काल अनंतानंत भवों में व्यतीत हो गया । सो उन कुयोनियों से निकलकर अनेक बार तू गर्भ में आया और मनुष्य बनकर अनेक बार ऐसे ही द्रव्यलिंग में भावरहित बनकर कुयोनियां प्राप्त करता रहा, इतनी बार तूने यह मनुष्यभव पाया जिसमें द्रव्यलिंग धारण कर अपनी खोटी भावनाओं से संसार में रुलता रहा, सो बतलाते हैं ।