वर्णीजी-प्रवचन:मोक्षपाहुड - गाथा 22
From जैनकोष
जो कोडिए ण जिप्पइ सुहडो संगामएहिं सव्वेहिं ।
सो किं जिप्पइ इक्कि णरेण सगामए सुहडो ।।22।।
अंतस्तत्त्व के ध्यान से सर्व विजय―इस गाथा में आत्मध्यान के प्रताप की जो बात पूर्व गाथा में कही थी उसी को दूसरा दृष्टांत देकर समर्थित किया है । जो सुभट करोड़ों सुभटों से भी नहीं पराजित हो सकता है वह एक सुभट से कैसे पराजित हो जायेगा ? कुछ वीर कोटिभट होते हैं, जैसे श्रीपाल को कोटिभट कहा है । जिसमें करोड़ों योद्धावों जितना बल होवे । करोड़ों योद्धा भी जिसे पराजित न कर सकें उसे कहते हैं कोटिभट । तो जो कोटिभट करोड़ों योद्धावों से भी न हार सके वह क्या किसी एक योद्धा से हार जायेगा ? अर्थात् नहीं हार सकता । इसी तरह जो जिनेंद्र मत के अनुयायी हैं वे मुनि भी परीषहों के द्वारा अजेय होते हैं । तो वह सुभट मुनि ज्ञानी सम्यग्दृष्टि जो अनेक इंद्रिय के विषयो से नहीं जीता जा सकता वह क्या एकेंद्रिय के विषय से जीता जा सकता है ? नहीं जीता जा सकता । इंद्रियविषय करने के लिए ऐसी अलग छांट नहीं होती कि जिसको रसनाइंद्रिय का विजय करना है तो बस खाली रसनाइंद्रिय का विजय कर लिया, हो जायेगा । किसी भी एक इंद्रिय का विजय करना है तो सभी इंद्रिय के विषयों को बंद करना पड़ेगा । कोई खूब रूप देखने का, सिनेमा देखने का शौक रखे और वह भोजन से वैराग्य रखे यह कैसे होगा ? जब वैराग्य होता है तो सभी से होता है । सो जो पांचों इंद्रिय के विषयों से नहीं जीता जा सकता वह मुनि क्या एक इंद्रिय से जीता जा सकता है ? नहीं, वह किन्हीं भी परीषहों से हार नहीं सकता ।