वर्णीजी-प्रवचन:मोक्षपाहुड - गाथा 80
From जैनकोष
निग्गंथमीहमुक्का बावीसपरीसहा जियकसाया ।
पावारंभविमुक्का ते गहिया मोक्खमग्गम्मि ꠰꠰80।।
मोहमुक्त परीषहविजयी जितकषाय पापारंभविमुक्त निर्ग्रंथ योगियों की मोक्षमार्ग प्रगति―जो पुरुष परिग्रह से रहित हैं; पुत्र, मित्र, स्त्री आदिक के स्नेह से रहित है, 22 परीषहों के विजयी हैं, कषायों को जीतने वाले हैं, पापारंभ से विमुक्त हैं वे साधु ही मोक्षमार्ग में स्वीकार किए गए हैं ꠰ बाह्य परिग्रह 10 होते हैं―खेत, मकान, धन, धान्य, दासी, दास, बर्तन, कपड़ा, सोना, चांदी, और अभ्यंतर परिग्रह 14 होते हैं―कषाय 4 और नोकषाय 9 और मिथ्यात्व ꠰ इन 24 प्रकार के परिग्रहों से जो रहित हैं, जिनको कुटुंब में ममत्वभाव नहीं है, परीषह आये तो समतापूर्वक सहन करते हैं; आत्मज्ञान के बल से, स्वभावदृष्टि के बल से जो कषायों पर विजय क्षणमात्र में करते हैं, केवल एक आत्मा की ही धुन रखते हैं अतएव किसी प्रकार का आरंभ नहीं कर पाते, आरंभ करने की जिनकी भावना नहीं है ऐसे योगी पुरुष मोक्षमार्ग में चल रहे हैं और इस काल में ऐसे साधु पुरुष इंद्र लौकांतिक जैसे पदों को भी प्राप्त कर लेते हैं, तो एक भव से ही मोक्ष जाते हैं, ऐसे विरक्त योगी क्षुधानिवृत्ति शुद्ध भिक्षावृत्ति से करते हैं ꠰ जो गृहस्थोचित्त सेवा कृषि आदिक आरंभ से अत्यंत दूर हैं वे मुनि वंदनीय हैं और ऐसे मुनियों की भक्ति के प्रसाद से भक्तों को मोक्षमार्ग की दिशा प्राप्त होती है ।