वर्णीजी-प्रवचन:मोक्षपाहुड - गाथा 79
From जैनकोष
जे पंचचेलसत्ता गंथग्गाही य जायणासीला ।
आधाकम्मम्मि रया ते चत्ता मोक्खमग्गम्मि ꠰꠰79꠰।
परिग्रहासक्त अधःकर्मरत पापीजनों की मोक्षमार्ग बहिर्भूतता―जो 5 प्रकार के वस्त्रों में आसक्त है, परिग्रह को ग्रहण करने वाला है, याचनाशील है, अधःकर्म में रत है वह मुनि तो मोक्षमार्ग से पतित है । वस्त्र 5 प्रकार के बताये हैं―(1) रोम के वस्त्र (2) चर्म के वस्त्र (3) वक्कल के वस्त्र (4) सूत के वस्त्र और (5) रेशमी वस्त्र । इन 5 प्रकार के वस्त्रों में किसी में भी जो मुनि आसक्त हो वह पापी है । और जो वस्त्र धारण करके भी अपने को मुनि कहलाये और लोक में दूसरे से श्रेष्ठ माने उनके तो माया कषाय की भी बहुत प्रबलता है ꠰ ये मुनि परिग्रह के धारी हैं, धन आदिक भी रख लेते हैं, याचना करने का इनका स्वभाव पड़ गया है और ये अध:कर्म में रत हैं, कैसी ही पापक्रियावों में रत हैं, कैसी ही पापादिक क्रियावों से भोजन तैयार किया गया हो, उसे भी ग्रहण कर लेते हैं । भले ही ये दुनियां को यह बतायें कि यह मेरे उद्देश्य से नहीं बना इसलिए यह पवित्र भोजन है, किंतु जो हिंसासाध्य है और अभक्ष्य है ऐसा भोजन तो अध:कर्म वाला भोजन है, सो जो अध:कर्म में, निंद्यकर्म में रत है वह मुनि मोक्षमार्ग से पतित है । मोक्ष पाने की यह रीति नहीं है । मोक्ष तो नाम अकेला आत्मा रह जाने का है, सो यहाँ भी ऐसी उपासना होना चाहिए कि जिसमें यह अपने को बाह्य और अभ्यंतर में अकेलापन महसूस करे ।