वर्णीजी-प्रवचन:मोक्षपाहुड - गाथा 88
From जैनकोष
किं बहुणा भणिएणं जे सिद्धा णरवरा गए काले ।
सिज्झिहहि जे वि भविया तं जाणह सम्ममाहप्पं ꠰꠰88।।
सिद्ध और सेत्स्यमान जीवों की सिद्धि में सम्यक्त्व का मूल आश्रय―अधिक कहने से क्या फायदा? भूतकाल में जितने भी श्रेष्ठ पुरुष सिद्ध हुए हैं और आगामी काल में जितने भी पुरुष सिद्ध होंगे वे सब सम्यक्त्व का माहात्म्य जानिये । जो बात सम्यक्त्व में होती है उस ही की अनुभूति रखना, उसमें ही उपयोग रमना, यह ही सम्यक᳭चारित्र कहलाता है । तो चूंकि विषय एक है, स्थिरता की बात है चारित्र में तो विषय की एकता होने से वह सब सम्यक्त्व का माहात्म्य बताया है । जो जीव सम्यक्त्व से दूर है, शरीर को आत्मा मानते हैं, विषयकषाय को अपनी करतूत मानते हैं, उनसे अपना बड़प्पन समझते हैं उनको तो पात्रता ही नहीं कि वे धर्मपालन कर सकें । जो मिथ्यात्व से दूर हैं, जिनकी दृष्टि में सहज सिद्ध आत्मस्वरूप बना हुआ है वे पुरुष निर्वाण को प्राप्त हुआ करते हैं । कितने जीव अब तक मोक्ष गए हैं, उनकी गिनती यदि कुछ जानना हो अनुभव से तो यों जानो कि सबसे कम जीव मनुष्य गति में है, उनसे असंख्यातगुने नरक गति में हैं, उनसे असंख्यातगुने देवगति में हैं, उनसे असंख्यातगुने सब त्रस जीव हैं, उनसे असंख्यातगुने निगोदिया जीवों को छोड़कर बाकी सब स्थावर जीव हैं और उनसे अनंतगुने सिद्ध महाराज हैं ꠰ अब समझो सिद्ध भगवान की कितनी संख्या है, और सिद्ध भगवान से अनंत गुने निगोदिया जीव हैं, नहीं तो यह प्रश्न आ जायेगा कि सिद्ध तो सबसे अधिक रहे, और बाकी सिद्ध से पहले के जो जीव हैं वे भी सिद्ध हो जाये तो फिर संसार में कौन रहेगा? सिद्ध से अनंतगुने निगोद जीव हैं और इतने अनंत गुने हैं कि एक शरीर में जितने निगोद जीव हैं अभी तक जितने सिद्ध हुए उनसे अनंत गुने हैं । फिर उनका शरीर बहुत सूक्ष्म, मतलब यह कि निगोद जीव अनंतानंत है और उनमें से 6 महीना 8 समय में 608 जीव निकलते हैं और उनमें जिनका भवितव्य ठीक है वे साधना बनाकर आत्म-उपासना के बल से निर्वाण पाते हैं । तो जिन्होंने निर्वाण पाया और जो निर्वाण पायेंगे सो सब सम्यग्ज्ञान का माहात्म्य जानना ꠰ जिनके सम्यक्त्व नहीं है और घर में चाहे कितना ही सुख हो, पर वह सब बेकार है । कैसे ही वैभव का सुख हो, कुटुंब का सुख हो, बड़ा आराम हो, इज्जत हो और सम्यक्त्व नहीं है तो उस जीव का सब समागम बेकार, क्योंकि थोड़े दिनों को इतरा लिया और मरण के बाद फिर वही संसारभ्रमण बना रहेगा, उनके इस पुण्य-समागम से कोई लाभ न होगा । और जिनके सम्यग्दर्शन है वे किसी भी परिस्थिति में हों, धनी हों, राजा हों, निर्धन हों, साधारण हों, उन्हें अपने ज्ञान-माहात्म्य से शांति बनी रहती है, मोक्षमार्ग बना रहता है, उन्हें मोक्ष प्राप्त होता है, इससे अपनी भावना यह रखें कि हमें सम्यग्दर्शन प्राप्त हो, बाहरी बातें तो कर्मोदय के अनुसार मिलती हैं, उनमें अधिक चित्त नहीं लगाना है । चित्त लगाना है तो उस तत्त्वज्ञान में जिसके ज्ञान के बल से सम्यक्त्व पाकर सम्यक्चारित्र पाकर मुक्ति प्राप्त हो ।