वर्णीजी-प्रवचन:मोक्षशास्त्र - सूत्र 9-41
From जैनकोष
एकाश्रये सवितर्कवीचारे पूर्वे ।। 9-41 ।।
प्रथम दो शुक्लध्यानों की विशेषतायें―पूर्व के दो शुक्लध्यान एक पदार्थ के आश्रय होते हैं किंतु वितर्क और वीचार सहित होते हैं । सामान्यतया दोनों शुक्ल स्थानों का संकेत किया गया है, पर दूसरे शुक्लध्यान में वीचार न हो तो परिवर्तन नहीं होता कि योग बदल जाये या शब्द बदल बदल जाये या विषय बदल जाये । तो यह बताने के लिए आगे सूत्र कहा जायेगा पर अन्य बातें सब समान होती हैं । इस कारण इस सूत्र में दोनों शुक्लध्यानों का संकेत किया है । पहले के दोनों ही श्रुतज्ञान पूर्वर्चित उन जीवों के द्वारा प्रारंभ किया जाता है । इस कारण एक आश्रय शब्द दिया है अर्थात् दोनों के स्वामी एक समान होते हैं, परिपूर्ण श्रुतज्ञानी होते हैं । इस सूत्र में द्वितीय पद है सवितर्क वीचार । यहाँ वितर्क का अर्थ है विशेष परिज्ञान, तर्कणा श्रुतज्ञान और वीचार का अर्थ है परिवर्तन । तो ये दोनों शुक्लध्यान तर्क और परिवर्तन सहित हैं । दूसरा शुक्लध्यान परिवर्तनरहित है, यह सिद्ध करने के लिए आगे सूत्र कहा जायेगा । इस सूत्र में तीसरा पद है पूर्व, यह प्रथम विभक्ति के दो वचन में है, जिससे पहले के दो शुक्लध्यान, यह अर्थ होता है । वहाँ पूर्व तो एक ही होता है लेकिन द्विवचन होने से दोनों शुक्लध्यानों का ग्रहण हुआ, अब द्वितीय शुक्लध्यान में परिवर्तन नहीं होता यह विशेष बतलाने के लिए सूत्र कहते हैं ।