वर्णीजी-प्रवचन:मोक्षशास्त्र - सूत्र 9-40
From जैनकोष
त्र्यैकयोग काययोगायोगानाम् ।। 9-40 ।।
चार शुक्लध्यान के स्वामियों का कथन―प्रथम शुक्लध्यान तीन योग वाले के होता है । होता है श्रेणी में ही, पर 8वें गुणस्थान से होता है । 11वें गुणस्थान तक यह शुक्लध्यान होता है इसमें योग बदलते रहते हैं । इसलिये तीन योग काले के होते हैं यह बताया है 12वें गुणस्थान में भी प्रारंभ के समय तीन योग वाले जीव रहते हैं और उसके यह प्रथम शुक्लध्यान पाया जाता है, पर अल्प समय ही बाद इस ही 12वें गुणस्थान में दूसरा शुक्लध्यान हो जाता है । द्वितीय शुक्लध्यान एक योग वाले जीव के होता है । अब वह योग कोई सा भी हो, मनोयोग, वचनयोग, काययोग इनमें से किसी भी योग में वह क्षीणमोह भव्य आत्मा रह रहा तो वहाँ द्वितीय शुक्लध्यान है तीसरा शुक्लध्यान होता है काययोगियों के जिनके सिर्फ सूक्ष्म काययोग रह गया है । ऐसे 13वें गुणस्थान के अंत में तीसरा शुक्लध्यान होता है । चौथा शुक्लध्यान योगरहित 14वें गुणस्थानवर्ती जीवों के होता है । अब उन चार ध्यानों में से प्रथम शुक्लध्यान का विशेष परिचय कराने के लिए सूत्र कहते हैं।