वर्णीजी-प्रवचन:शीलपाहुड - गाथा 30
From जैनकोष
जइ विलयलोलएहिं णाणीहि हविज्ज साहिदो मोक्खो ।
तो सो सच्चइपुत्तो दसपुव्वीओ वि किं गदो णरयं ।।30।।
(61) विषयलोलुपी की ज्ञान होने पर भी दुर्गति―ज्ञान एक बहुत बड़ा सहारा है, किंतु कोई पुरुष चारित्र तो पाले नहीं, विषयों में लालची रहे और ज्ञान उसने पाया हो तो क्या ज्ञान से मोक्ष हो जायेगा ? यदि ज्ञान से ही मोक्ष होता हो, संयम और चारित्र की आवश्यकता न हो तो 11 अंग 9 पूर्व के धारी 10 वां पूर्व भी सिद्ध करने वाले जैसे रुद्र, सात्यकीपुत्र महादेव, इतने बड़े ज्ञानी होकर आखिर अपने व्रत से च्युत हुए और उन्हें खोटी गतियों में जन्म लेना पड़ा । आज जितने भी अन्य लोगों के यहाँ बड़े भगवान के रूप में माने जाते हैं उन सबकी कथा जैनशासन में भी है । विष्णु, महादेव, ब्रह्मा और देवी-देवता सबकी कथा अपने यहाँ है और ये भव्य जीव भी हैं और आगे मोक्ष भी जायेंगे । पहले जैनधर्म के वे उपासक भी थे, महादेव तो निर्ग्रंथ दिगंबर थे । ऐसा अन्य लोग भी मानते हैं कि पाणिपात्र थे याने हाथ में ही भोजन करते थे, दिगंबर थे, नग्न थे, तपस्वी थे और विशेषतया कैलाशपर्वत पर उनका तपश्चरण चलता था, उनको 11 अंग 9 पूर्व तक का ज्ञान हो गया, जब 10 वां पूर्व सिद्ध हुआ तो 10 वें पूर्व में बहुत से देवी-देवता सिद्ध होते हैं । तो देवियां आयीं अपने सुंदर श्रृंगार में और महादेव दिगंबर मुनि से कहा कि आप जो आज्ञा दे दीजिए मैं वही काम करूं, बस वे वहाँ विचलित हो गए और विचलित होने के बाद फिर अपना विवाह भी कराया पर्वत राजा की पुत्री पार्वती से, फिर और आगे यह कथानक बढ़ता गया, खैर जो भी हो, मगर वह महादेव निर्ग्रंथ दिगंबर गुरु थे, भले मुनि थे, और इतना विशाल ज्ञान पाया था, पर यहाँ यह बतला रहे कि ज्ञान से ही तो मोक्ष नहीं मिलता, संयम में दृढ़ रहना, संयम की साधना ठीक रहती तो मोक्ष होता । तो जो विषयों के लोलुपी जीव हैं, और ज्ञान सहित हैं तो सिर्फ ज्ञान से भी मोक्ष नहीं होता जब तक कि विषयविरक्ति न हो और संयम साधन न हो ।