वर्णीजी-प्रवचन:ज्ञानार्णव - श्लोक 1392
From जैनकोष
ऐंद्रे विजय: समरे ततोऽधिको वांछितश्च वरुणे स्यात्।
संधिर्वा रिपुभंगात्स्वसिद्धिसंसूचनोपेत:।।1392।।
इस प्रकरण में सामान्यतया ऐसा निर्णय कर लेना चाहिए किसभी जगह प्राय:4 मंडल होते हैं।जिनमें सबसे उत्तम जलमंडल का श्वास हे, जो श्वास शांत शीतल बहती हो और साथ ही यदि श्वास बाम स्वर से चलती हो तो वह और भी उत्तम हो, ऐसी श्वास में प्रश्नकर्ता हो और साथ ही समाधानकर्ता भी इसी जलमंडल की श्वास में हो तो शुभ ही उत्तर होगा।प्रत्येक दृष्टियों में लाभ होगा।पृथ्वीमंडल में उससे कम लाभ की बात है। वायुमंडल में उससे कम लाभ की अथवा समझिये कि हानि की बात है और अग्निमंडल में पूर्णतया हानि की बात है।
अभ्यास करने से श्वास का परिज्ञान हो सकता है। इन लक्षणों को मिलाकर अपनी श्वास का मिलान करें और प्रश्नकर्तावों को उसका उत्तर दें तो इस प्रयोग से श्वासमंडल का सही परिज्ञान हो जाता है।पृथ्वीतत्त्व में कोई प्रश्न करे अथवा समाधानकर्ता हो तो संग्राम में विजय का उत्तर देवे। युद्ध में विजय होगा। कोई पूछे कि इस युद्ध में इसका क्या होगा? तो अपने श्वास का परिचय करें और प्रश्नकर्ता के श्वास भी देखें। यदि पृथ्वीमंडल की श्वास चल रही हो जो कि एक साधारण उष्ण होगी, जिसका प्रभाव करीब 8 अंगुल तक चलेगा जो सीध श्वास बनेगी यहाँ-वहाँ घूमकर नहीं। ऐसी श्वास के समय युद्ध की वार्ता पूछने पर उत्तर होगा कि संग्राम में विजय होगी, और वरुणपवन में कोई प्रश्न करे, जलमंडल का श्वास हो जो शीतल और शांत श्वास होगा तो उसका उत्तर होगा कि जितने विजय की आशा कोई करता हो उससे भी अधिक विजय होगा। यह श्वासों का परिज्ञान एक लौकिक लाभ को बताता है जिससे मुमुक्षुजनों का कुछ प्रयोजन नहीं है।किंतु यह एक विद्या है, विज्ञान है, इस श्वास के परीक्षण से दूसरों का लाभ अलाभ बता सकते हैं। इससे साधारणतया यह समझना कि नाक के बायें स्वर में बहना स्वास्थ्य के लिए लाभ देने वाली है और बाहर में शुभ कार्यों को भी बताने वाली है, और दाहिने स्वर से चलित कार्यों की सिद्धि बतायी गई और स्थिरता के कार्यों में असिद्धि बतायी गई। यह तो एक स्वरविज्ञान में प्रथम मूल आधार है, फिर इससे भी विशेष ठीक उत्तर जानना हो तो इसमें मंडल की परीक्षा करें, जैसा कि अभी बहुत बार इसका स्वरूप आया है। उनमें से जलमंडल में जो प्रश्न करें, तो उसका फल उत्तम है, पृथ्वीमंडल में करे तो कम लाभ, वायुमंडल में करे तो उससे कम लाभ अथवा हानि। वायुमंडल में हानि बताना चाहिए। इनका संबंध कषाय और शांति से भी है। मनुष्य को तीव्र क्रोध के समय परख लेते कि दाहिने स्वर से वायु निकली होगी और समता से शांति से कोई बैठा हो तो उसकी श्वास बायें स्वर से निकलती होगी।