वर्णीजी-प्रवचन:ज्ञानार्णव - श्लोक 1393
From जैनकोष
वर्षति भौमे मघवान्वरुणेऽभिमतो मतस्तथाजस्रम्।
दुर्दिनघनाश्च पवने वह्नौ वृष्टि: कियन्मात्रा।।1393।।
पृथ्वीतत्त्व में तो मेघ का बरसना कहा। कोई प्रश्न करे कि मेघ बरसेगा या नहीं? तो श्वास यदि पृथ्वीतत्त्व से चलती हो याने श्वास चौकोर चलती हो, जो चारों ओर से फैली हुई सी निकलती हो, जैसे बैट्री की लाइट में जो केंद्र स्थान रहना है वहाँ तो थोड़ा प्रकाश दिखता और बाहर में फैला हुआ चारों और प्रकाश रहता है, इसी प्रकार जो वायु चौकोर फैली हुई सी है, जिसमें कहीं तेज टक्कर सी नहीं लगती, ऐसी श्वास हो उसे पृथ्वीमंडल की श्वास कहते हैं। ऐसी श्वास में कोई मेघ बरसने की बात पूछे तो स्वरविज्ञान के शास्त्र यह उत्तर देते हैं कि वर्षा होगी। तो जितनी वर्षा चाहिए उतना बरसेगाऐसा वरुण की श्वास में उत्तर आयगा। वरुणमंडल मायने जलमंडल। जिसकी पहिचान है कि श्वास निकलती है उसके बाहर में आकार अर्द्धचंद्र की तरह बनता है। यदि नाक के सामने उल्टा हाथ लगाया जाय तो बीच में तेज प्रभाव पड़ेगा और अगल-बगल कम प्रभाव पड़ेगा, उसका आकार अर्द्धचंद्र की तरह बन जाता है, और इसका प्रभाव दो अंगुल तक चलता है, ऐसे जलमंडल में कोई प्रश्न करे अथवा समाधानकर्ता का यह स्वर हो तो उसका उत्तर होगा कि अच्छी वर्षा होगी। कोई पवनतत्त्व में पूछे तो यह कहना चाहिए कि दुर्दिन होगा। दुर्दिन ऐसा कि जिस दिन बादल खूब घिरे रहें, पानी न बरसे अथवा कभी-कभी थोड़ी बूँदा-बाँदी भी हो जाय। और अग्नितत्त्व में कोई प्रश्न पूछे तो साधारण वृष्टि होना कहो जिससे न कृषकों को तृप्ति होती और न किसी की बेचैनी मिटती, ऐसा उत्तर आयगा।