वर्णीजी-प्रवचन:ज्ञानार्णव - श्लोक 1509
From जैनकोष
स्वशरीरमिवान्विष्य परांग च्युतचेतनम्।
परमात्मानज्ञानी परबुद्धयाडध्यवस्यति।।1509।।
ये अज्ञानी जीव जैसे अपने शरीर को निरखकर ‘यह मैं हूँ’ ऐसा मानते हैं ऐसे ही दूसरे के देह को निरखकर ये दूसरे जीव हैं यों समझते हैं। देखिये दूसरे जीव हैं, अन्य जीव हैं ऐसा जानना बुरा नहीं है पर देह को ही यह मानते हैं कि ये ही अन्य जीव हैं। जैसे अपने देह को माना था कि यह मैं जीव हूँ, ऐसे ही दूसरे के देह को देखकर मानते हैं कि ये दूसरे जीव हैं। सो ही मिथ्यात्व है। अपने देह को माना कि यह मैं हूँ, वहाँ भी देह को अपनाया, पर के देह को माना कि ये परजीव हैं वहाँ भी पर को कहा तो यह मिथ्या दर्शन है।