वर्णीजी-प्रवचन:ज्ञानार्णव - श्लोक 1680
From जैनकोष
काश्चिद्वज्रानलप्रख्या: काश्चिछीतोष्णसंकुला:।
तुषारबहुला: काश्चिद्भूमयोऽत्यंत भीतिदा:।।1680।।
नरकभूमियों की दु:खसाधनता―उन नरकों में नारकी जीव एक दूसरे को मारते हैं वे तो दु:ख हैं ही, मगर वहाँ भूमि का ही महान् दु:ख है। वहाँ की भूमि कुछ तो अत्यंत बज्रानल से दीप्त है अर्थात् तेज गरमी है। ऐसी तेज गरमी है कि लोहे का पिंड गल जाय। ऐसी तीक्ष्ण गरमी वाले नरकों में वे नारकी जीव स्वयं बड़ा दु:ख भोगते हैं। कुछ भूमि ऐसी है कि जिसमें अत्यंत शीत है। यहाँ ही पूस माह के महीने में जबकि शिमला में मसूरी में बर्फ गिर जाय तो ऐसी शीत की लहरें चलती हैं कि यह मनुष्य उस शीत में चल नहीं सकता, उससे भी अधिक शीत उन नरकों की हे जिनको पाकर लोहा भी गल जाता है। जैसे जब बहुत शीत होती है तो वृक्ष जल जाते हैं, वहाँ पत्थर भी गल जाय ऐसी तीक्ष्ण ठंड पड़ती है। ठंड गर्मी का ही वहाँ दु:ख अपने आप है तो वहाँ पर घोर दु:ख ये नारकी जीव भोगते हैं।
नरकभूमियों के अस्तित्व में नि:संदेहता―यह नरक है अथवा नहीं, इस विषय में कुछ लोग शंका कर सकते हैं। प्रथम तो शंका करने की यों बात नहीं है कि जिन जिनेंद्र भगवान ने जो आगम में प्रणीत किया है अथवा जो बात हम यथार्थ अनुभव करते हैं, 7 तत्त्वों का स्वरूप, पदार्थों का स्वरूप हम यथार्थ पाते हैं जैसा जिनेंद्र वाणी में लिखा हुआ है तो हमें यह श्रद्धा हो ही जायगी कि उनके द्वारा प्रणीत जो कुछ भी उपदेश है, प्रयोजन की बात है हम आंखों से नहीं निरख सकते बहुत दूर की बात, पर जिनेंद्र को असत्य संभाषण से क्या प्रयोग था? जो युक्ति और अनुभव से जाना कि वह योग्य उपदेश है। जब वह हमें शब्दार्थ मिला तो वहाँ ही सब उपदेश शब्दार्थ है। जैसे कोई मनुष्य किसी दूसरे की हत्या कर दे तो राजा उसे मृत्यु दंड देता है। फिर कोई लोग करोड़ों पशु मारें, अन्याय करें तो उसका दंड मनुष्यभव में ठीक मिल सकना तो कठिन है, जिसने हजारों, लाखों, करोड़ों पशु पक्षियों को मारा उसको मरकर नरकगति में जाना पड़ता है। वे नारकी जीव इतना दु:ख सहते हैं कि उनके तिल-तिल बराबर खंड हो जाते, फिर भी पारे की तरह वे टुकड़े फिर मिलकर एक बन जाते हैं। वहाँ की बात भी थोड़ी देर को जाने दो, यहाँ भी देख लो, जो मनुष्य बुरे विचार रखता है, कषाय परिणाम रखता है, कषाय की प्रवृत्ति करता है, बहुत-बहुत उल्झनों में बना रहता है उसको तत्काल भी महान् अशांति है और निकट भविष्य में भी उसे अशांति रहेगी। तो पाप के जो कर्म हैं वे तो नियम से खोटा फल देते हैं। यहाँ ही निरख लो और आगम को निरख लो, बहुत बड़ी कमाई है, हजारों लाखों की संपत्ति पास में है पर दूसरों के प्रति परिणाम छल कपट दगाबाजी का रखे, दूसरों के सताने का परिणाम आये तो उसकी वह संपत्ति बेकार है, उसकी वह संपत्ति पूर्वभव की कमाई है, इस भव की कमाई नहीं है। यह वैभव तो पुण्य पाप के उदय के अनुसार आता जाता है।