वर्णीजी-प्रवचन:ज्ञानार्णव - श्लोक 16
From जैनकोष
जयंति जिनसेनस्य वाचस्त्रैविद्यवंदिता:।
योगिभिर्यत्समासाद्य स्खलितं नात्मनिश्चये।।16।।
भगवज्जिनसेनाचार्य को नमस्कार― जिनसेनाचार्य के वचन जयवंत रहें जो योगीश्वरों के द्वारा वंदनीय हैं। जिनके वचनों का आश्रय करके योगीजन आत्मा के निश्चय में स्खलित नहीं होते हैं ये जिनसेनाचार्य भी अपने समय में बहुत प्रसिद्ध हुये हैं। भगवान जिनसेनाचार्य के समय में एक बार ऐसी घटना हुई कि उनके साहित्यिक अनेक रसों से भरे हुए ग्रंथों को देखकर विद्वानों ने उन पर शंका की। उस समय आचार्यदेव ने बड़ी भरी राज सभा में श्रृंगार प्रमुख ढंग से एक कथानक बोला― तो उसमें कामरस का भी बहुत वर्णन किया, जैसे कि साहित्य में करना पड़ता है, जिस वर्णन को सुनकर बहुत से लोग अपने भावों में विकृत हो गये, तो लोगों की उस समय जो ये शंकायें थी कि इन्होंने ऐसे ग्रंथों में जो बहुत-बहुत वर्णन किया है ऐसे कामरस का वर्णन जिनसेनाचार्य जैसे वैरागी पुरुष किस प्रकार कर सकते हैं? इसका समाधान उस सभा में हुआ था, जिस सभा में इतना वर्णन करने पर भी ये अविकृत और शांतमुद्रा में रहे। जिनसेनाचार्य ने उस समय जिनशासन की बड़ी रक्षा की जबकि लोगदूसरों के आतंक से विचलित हो रहे थे। उन जिनसेनाचार्य को शुभचंद्राचार्य नमस्कार कर रहे हैं।