वर्णीजी-प्रवचन:ज्ञानार्णव - श्लोक 15
From जैनकोष
अपाकुर्वंति यद्वाच: कायवाक्रचित्तसंभवम्।
कलंकमडि्.गनां सोऽयं देवनंदी नमस्यते।।15।।
आचार्य देवनंदी को नमस्कार―मन, वचन, काय से उत्पन्न होने वाले कलंकों को जिन्होंने दूर कर दिया है ऐसे देवनंदी आचार्य को यहाँ नमस्कार कर रहे हैं। प्रभु स्मरण के बाद आचार्य समंतभद्र स्वामी को स्मरण किया था और अब देवनंदी आचार्य का स्मरण कर रहे हैं। देवनंदी आचार्य का द्वितीय नाम पूज्यपाद स्वामी है। ऐसी प्रसिद्धि हे कि जो 10 भक्तियाँ बनी हैं उनमें जो प्राकृत की भक्तियाँ हैं, वे तो कुंदकुंदाचार्य देवकृत हैं और जो संस्कृत की भक्तियाँ हैं वे पूज्यपाद स्वामी कृत हैं। पूज्यपाद स्वामी के बनाए हुये अन्य भी ग्रंथ हैं, जिनमें सर्वथा सिद्धि समाधिशतक आदि सिद्धांत ग्रंथ व वैद्यक आदि विषयों के ग्रंथ प्रसिद्ध हैं। उन देवनंदी आचार्य को यहाँ शुभचंद्रदेव नमस्कार कर रहे हैं।