जगत जन जूवा हारि चले
From जैनकोष
(राग विहाग)
जगत जन जूवा हारि चले ।।टेक ।।
काम कुटिल संग बाजी मांडी, उन करि कपट छले ।।जगत. ।।
चार कषायमयी जहँ चौपरि, पासे जोग रले ।
इस सरवस उत कामिनी कौड़ी, इह विधि झटक चले ।।१ ।।जगत. ।।
कूर खिलार विचार न कीन्हों, ह्वै है ख्वार भले ।
बिना विवेक मनोरथ काके, `भूधर' सफल फले ।।२ ।।जगत. ।।