वर्णीजी-प्रवचन:मोक्षशास्त्र - सूत्र 5-40
From जैनकोष
सो नंतसमय: ।। 5-40 ।।
काल द्रव्य के समयनामक परिणमन के विषय की मीमांसा―वह काल द्रव्य अनंत समय वाला है । काल द्रव्य इतना सूक्ष्म पदार्थ है कि जिसके बारे में संदेह अथवा यह कहना बन सकता है कि काल द्रव्य मानने की जरूरत ही क्या है? समय चल रहा है और उस निकलने वाले समय के अनुसार समस्त पदार्थ स्वयं ही परिणम रहे हैं, फिर काल द्रव्य के मानने की क्या जरूरत रही? अनेक दार्शनिकों ने काल को पृथक् द्रव्य नहीं माना । अगर वे यह विचार करें कि एक-एक समय नाम की यदि वास्तविक पर्याय न हो तो उन समयों के बिना जो दिन, महीना, वर्ष आदिक कहते हैं, ये विभाग नहीं बन सकते । पहले समय नाम की पर्याय तो अवश्य है, और जो भी पर्याय होती है उसका आधार जरूर होता है, वह परिणमन किसमें हुआ? तो समय नामक पर्याय काल द्रव्य में हुआ है । इससे काल द्रव्य की यह पर्याय है और वास्तव में काल द्रव्य है । इसमें मुख्य तो काल द्रव्य हैं, और वे असंख्यात हैं । लोकाकाश के एक-एक प्रदेश पर एक-एक काल द्रव्य अवस्थित है, पर यह सूत्र व्यवहार काल का परिणमन बताने के लिये कहा गया है । जब वर्तमान एक समय माना जाये तो अतीत और अनागत याने भूत और भविष्य समय भी समझे जा सकते हैं । तो भूत और भविष्य समयों की अपेक्षा अनंत समय है और वर्तमान की अपेक्षा तो एक ही समय है और काल में जो परिणमन हो रहा है तो प्रत्येक काल का एक-एक समय परिणमन है, अथवा जो मुख्य काल द्रव्य है उसका ही प्रमाण बताने के लिए यह सूत्र कहा जा रहा क्योंकि अनंत पर्यायों के परिणमन का निमित्त होने से, कारण होने से अथवा उपादान कारण होने से एक-एक प्रत्येक काल द्रव्य भी उपचार से अनंत कहा जाता है । और समय तो एक अविभागी समय है । उन्हीं समयों का समूह बनाकर आवली, घड़ी, घंटा, दिन, महीना आदिक बनते हैं । इस प्रकार यहाँ तक काल द्रव्य का व्याख्यान किया गया । अब इस प्रथम सूत्र में काल द्रव्य के वर्णन से पहले वाले सूत्र में बताया गया था कि द्रव्य गुण पर्याय वाले होते हैं । तो उनमें गुण क्या कहलाते हैं? गुणों का क्या लक्षण है? यह प्रकट करने के लिये सूत्र कहते हैं ।