वर्णीजी-प्रवचन:मोक्षशास्त्र - सूत्र 7-29
From जैनकोष
क्षेत्रवास्तुहिरण्यसुवर्णधनधान्यदासीदासकुप्यप्रमाणातिक्रमा: ।।7-29।।
(198) परिग्रहविरतिनामक पंचम् अणुव्रत के अतिचार―परिग्रह विरति नामक व्रत के 5 अतिचार इस प्रकार हैं―[1] भेदवस्तुप्रमाणातिक्रम―खेत और मकान के परिमाण का उल्लंघन कर देना । इस व्रती ने व्रत धारण करते समय खेत मकान आदिक सबका परिमाण रखा था । सो उसकी सीधी संख्या में परिमाण का उल्लंघन करने में व्रत भंग है, किंतु किसी युक्ति से उस कल्पित परमाणु का उल्लंघन करना यहाँ अतिक्रम कहा गया है । जैसे किसी ने चार खेतों का परिमाण रखा था, अब 5 वाँ खेत उसके पास का बिक रहा है उसे खरीद लिया तो उसके साथ ही यह खेत की मेड़ तोड़ देना जिससे कि चार ही कहलाये तो यह अतिक्रम है । ऐसे ही मकान के संबंध में जानना किसी ने एक ही मकान रखा था और पास का ही मकान बिक रहा उसे खरीद लिया और तुरंत ही अपनी दीवाल में से एक द्वार निकाल लिया, जिससे दूसरे मकान में अपने घर में से आना जाना बन गया और उसे एक ही मकान समझ लिया तो यह अतिक्रम है । इसमें व्रत के समय किए गए इरादे का घात है । [2] हिरण्यस्वर्णमाणातिक्रम―सोने चांदी के परिमाण का उल्लंघन करना सीधे परिमाण का उल्लंघन करना तो वह अनाचार है, पर इसमें हो युक्ति से कुछ बढ़ा लेना, जैसे स्वर्ण बढ़ा लिया, चांदी घटा ली या अन्य कुछ उसमें छल बनाया तो वह अतिक्रम कहलाता हे । [3] धनधान्यप्रपाणातिक्रम―रुपया पैसा आदिक धन कहलाते है अनाज धान्य कहलाते हैं अथवा गौ आदिक भी धन कहलाते है । इन सबके परिमाण का उल्लंघन करना यह परिग्रह विरति का तीसरा अतिचार है । [4] दासीदास प्रमाणातिक्रम―जो सेवक और सेविकाओं का परिमाण किया गया था उसका सीधा तो उल्लंघन किया नही संख्या में, किंतु दासी कम कर ली दाम बढ़ा लिया आदिक ढंग से परिमाण का उल्लंघन करना यह परिग्रहविरति का चौथा अतिचार है । [5] कुप्यभांडप्रमाणातिक्रम―कुप्य कहते है वस्त्रों को और मारंड कहते हैं बर्तनों को । किसी देश में बर्तनों को भाड़ा भी कहा जाता है । इनका परिमाण उल्लंघन करना यह 5 वां अतिचार है । इसमें भी सीधी संख्या का तो उल्लंघन नही किया, किंतु जैसे वस्त्रों का परिमाण 50 गज रखा तो रखना तो 50 गज है मगर और बड़ा पना कर लेना अथवा दोहरा सिलवाकर 50 गज में ही मान लेना इस प्रकार के उल्लंघन को 5 वां अतिचार कहते है । लिये हुए परिमाण का उल्लंघन तीव्र लोभ के अभिप्राय से होता है, अत: ये 5 परिग्रह विरति व्रत के अतिचार दोषरूप हैं । इस प्रकार व्रतों के अतिचार तो कहे गए, अब शीलों के अतिचार कहे जायेंगे इन शीलों में प्रथम नाम है दिग्व्रत, सो दिग्व्रत के अतिचार कहते हैं ।