वर्णीजी-प्रवचन:शांतिभक्ति - श्लोक 10
From जैनकोष
पंचममीप्सितचक्रधराणां पूजितमिंद्रनरेंद्रगणैश्च।शांतिकरं गणशांतिमभीप्सु: षोडशतीर्थंकरं प्रणमामि।।10।।
(128) पंचम चक्रवर्ती एवं सोलहवें तीर्थंकर देव के प्रति प्रणमन―मैं सोलहवें तीर्थंकर श्री शांतिनाथप्रभु को नमस्कार करता हूँ। जो पंचम चक्रवर्ती थे तथा इंद्र नरेंद्र आदिक समूह के द्वारा पूजित हुए, ऐसे सोलहवें तीर्थंकर श्री शांतिनाथ जिनेंद्र को जो कि शांति के करने वाले हैं, उस चतुर्विध संघ की शांति चाहता हुआ प्रणाम करता हूँ। प्रभु का प्रणाम करने का प्रयोजन बताया है कि जो चार प्रकार का संघ है―मुनि, आर्यिका, श्रावक, श्राविका इस समस्त संघ की शांति के लिए मैं प्रणाम करता हूँ। चार प्रकार के संघ में सभी धर्मात्मा पुरूष आ गए। जो निष्पृह हैं वे आये मुनि अर्जिका में और जो घरवाले हैं वे आये श्रावक श्राविका में। उनकी शांति प्राप्त हो, उन्हीं में हम भी हैं, यह कहने वाला भी है, तो मैं अपने लिए अलग से कहकर शांति चाहूं, उससे यह उदार वाली भावना है कि चार प्रकार संघ को शांति दीजिए।