अल्पबहुत्व
From जैनकोष
पदार्थों का निर्णय अनेक प्रकार से किया जाता है-उनका अस्तित्व व लक्षण आदि जानकर, उनकी संख्या या प्रमाण जानकर तथा उनका अवस्थान आदि जानकर। तहाँ पदार्थों की गणना क्योंकि संख्या को उल्लंघन कर जाती है और असंख्यात व अनन्त कहकर उनका निर्देश किया जाता है, इसलिए यह आवश्यक हो जाता है कि किसी भी प्रकार उस अनन्त या असंख्य में तरतमता या विशेषता दर्शायी जाय ताकि विभिन्न पदार्थों की विभिन्न गणनाओं का ठीक-ठीक अनुमान हो सके। यह अल्पबहुत्व नाम का अधिकार जैसा कि इसके नाम से ही विदित है इसी प्रयोजन की सिद्धि करता है।
- अल्पबहुत्व सामान्य निर्देश व शंकाएँ
- ओघ आदेश प्ररूपणाएँ
- प्ररूपणाओं विधयक नियम तथा काल व क्षेत्र के आधार पर गणना करने की विधि। देखें - संख्या - 2
- सारणी में प्रयुक्त संकेतों के अर्थ।
- षट् द्रव्यों का षोडशपदिक अल्प बहुत्व।
- जीव द्रव्यप्रमाण में ओघ प्ररूपणा।
- गतिमार्गणा
- इन्द्रिय मार्गणा
- काय मार्गणा
- गति इन्द्रिय व काय की संयोगी परस्थान प्ररूपणा।
- योग मार्गणा
- वेद मार्गणा
- कषाय मार्गणा
- ज्ञान मार्गणा
- संयम मार्गणा
- दर्शन मार्गणा
- लेश्या मार्गणा
- भव्य मार्गणा
- सम्यक्त्व मार्गणा
- संज्ञी मार्गणा
- आहारक मार्गणा
- प्रकीर्णक प्ररूपणाएँ
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१. सिद्धोंकी अनेक अपेक्षाओं से अल्पबहुत्व प्ररूपणा
1. संहरण सिद्ध व जन्म सिद्ध की अपेक्षा।
2. क्षेत्र की अपेक्षा (केवल संहरण सिद्धोंमें)।
3. काल की अपेक्षा।
4. अन्तर की अपेक्षा।
5. गति की अपेक्षा।
6. वेदनानुयोग की अपेक्षा।
7. तीर्थंकर व सामान्य केवली की अपेक्षा।
8. चारित्र की अपेक्षा।
9. प्रत्येकबुद्ध व बोधितबुद्ध की अपेक्षा।
10. ज्ञान की अपेक्षा।
11. अवगाहना की अपेक्षा।
12. युगपत् प्राप्त सिद्धोंकी संख्या की अपेक्षा।
२. १-१, २-२ आदि करके संचय होनेवाले जीवोंकी अल्प बहुत्वप्ररूपणा
1. गति आदि १४ मार्गणा की अपेक्षा।
३. २३ वर्गणाओं सम्बन्धी प्ररूपणाएँ
1. एक श्रेणी वर्गणाके द्रव्य प्रमाण की अपेक्षा।
2. नाना श्रेणी वर्गणाके द्रव्यप्रमाण की अपेक्षा।
3. नाना श्रेणी प्रदेश प्रमाण की अपेक्षा।
4. उपरोक्त तीनोंकी स्व व परस्थान प्ररूपणा।
४. पंच शरीर बद्ध वर्गणाओंकी प्ररूपणा
1. पंच वर्गणाओंके द्रव्य प्रमाण की अपेक्षा।
2. पंच वर्गणाओंकी अवगाहना की अपेक्षा।
3. पंच शरीरबद्ध विस्रसोपचयों की अपेक्षा।
4. प्रत्येक वर्गणामें समय प्रबद्ध प्रदेशों की अपेक्षा।
5. शरीर बद्ध विस्रसोपचयोंकी स्व व परस्थान की अपेक्षा।
6. पंच शरीरबद्ध प्रदेशों की अपेक्षा।
7. औदारिक शरीरबद्ध प्रदेशों की अपेक्षा।
8. इन्द्रिय बद्ध प्रदेशों की अपेक्षा।
पाँचों शरीरोंमें प्रथम समयप्रबद्ध से लेकर अन्तिम समयप्रबद्ध तक बन्धे प्रदेशप्रमाण की अपेक्षा। दे.
(ष.ख.१४/५,६/सू.२६३-२८६/३३९-३५२)।
पाँचों शरीरों की ज.व उ. स्थिति या निषेकोंके प्रमाण की अपेक्षा। दे. (ष.ख.१४/५,६/सू.३२०-
३३९/३६६-३६९)
पाँचों शरीरोंके ज.उ.व उभय स्थितिगत निषेकोंमें प्रदेश प्रमाण की अपेक्षा। दे.
(ष.ख.१४/५,६/सू.३४०-३८९/३७२-३८७)।