कथा
From जैनकोष
मोक्ष पुरुषार्थ में उपयोगी होने से त्रिवर्ग-धर्म अर्थ, और काम का कथन करने वाली साहित्यिक विधा । इसके दो भेद होते हैं—सत्कथा और विकथा । कथा चार प्रकार की होती है― आपेक्षेपिणी, विक्षेपिणी, संवेदिनी और निर्वेदिनी । इनमें स्वमत की स्थापना करते समय आक्षेपिणी, मिथ्यामत का खंडन करते समय विक्षेपिणी पुण्य-फल, विभूति आदि का वर्णन करते समय संवेदिनी और वैराग्य उत्पादन के समय निर्वेदिनी कथा कथनीय होती है महापुराण 1.118-121, 135-136, पांडवपुराण 1.62-70