निरर्थक
From जैनकोष
( न्यायदर्शन सूत्र/ मू.व वृ./5/2/8) वर्णक्रमनिर्द्देशवन्निरर्थकम् ।8। यथा नित्य: शब्द: कचटतपा: जबडदशत्वात् झभञघढधषवदिति एवं प्रकारनिरर्थकम् । अभिधानाभिधेयभावानुपपत्तौ अर्थगतेरभावाद्वर्णा: क्रमेण निर्दिशंत इति।8। =वर्णों के क्रम का नाममात्र कथन करने के समान निरर्थक निग्रहस्थान होता है। जैसे–क, च, ट, त, प ये शब्द नित्य हैं। ज, ब, ग, ड, द, श, त्व, होने के कारण, झ, भ, ञ, घ, ढ, ध, ष की नाईं। वाच्यवाचक भाव के नहीं बनने पर अर्थ का ज्ञान नहीं होने से वर्ण ही क्रम से किसी ने कह दिये हैं, इसलिए यह निरर्थक है। नोट—( श्लोकवार्तिक 4/1/33/, न्या.श्लो.197-200/382 )–में इसका निराकरण किया गया है।