उपासक क्रिया: Difference between revisions
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<p> गृहस्थों से संबंधित क्रिया । यह तीन प्रकार की होती है― गर्भान्वय, दीक्षान्वय और कर्त्रन्वय । इनमें गर्भान्वय में गर्भाधान से लेकर निर्वाण तक की त्रेपन क्रियाएं होती है । ये क्रियाएँ शुद्ध सम्यग्दृष्टि के ही होती है । दीक्षान्वय क्रियाएं अड़तालीस है, ये अवतार से लेकर निर्वाण पर्यंत होने वाली क्रियाएं मोक्ष-साधक है । सद्गृहित्व से कर्त्रन्वय क्रियाएँ होती है । <span class="GRef"> महापुराण 63.300-305 </span></p> | <div class="HindiText"> <p> गृहस्थों से संबंधित क्रिया । यह तीन प्रकार की होती है― गर्भान्वय, दीक्षान्वय और कर्त्रन्वय । इनमें गर्भान्वय में गर्भाधान से लेकर निर्वाण तक की त्रेपन क्रियाएं होती है । ये क्रियाएँ शुद्ध सम्यग्दृष्टि के ही होती है । दीक्षान्वय क्रियाएं अड़तालीस है, ये अवतार से लेकर निर्वाण पर्यंत होने वाली क्रियाएं मोक्ष-साधक है । सद्गृहित्व से कर्त्रन्वय क्रियाएँ होती है । <span class="GRef"> महापुराण 63.300-305 </span></p> | ||
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Revision as of 16:52, 14 November 2020
गृहस्थों से संबंधित क्रिया । यह तीन प्रकार की होती है― गर्भान्वय, दीक्षान्वय और कर्त्रन्वय । इनमें गर्भान्वय में गर्भाधान से लेकर निर्वाण तक की त्रेपन क्रियाएं होती है । ये क्रियाएँ शुद्ध सम्यग्दृष्टि के ही होती है । दीक्षान्वय क्रियाएं अड़तालीस है, ये अवतार से लेकर निर्वाण पर्यंत होने वाली क्रियाएं मोक्ष-साधक है । सद्गृहित्व से कर्त्रन्वय क्रियाएँ होती है । महापुराण 63.300-305