अजीव विचय
From जैनकोष
हरिवंशपुराण - 56.44 द्रव्याणामप्यजीवानां धर्माधर्मादिसंज्ञिनाम् । स्वभावचिंतनं धर्म्यमजीवविचयं मतम् ।44। =धर्म-अधर्म आदि अजीव द्रव्यों के स्वभाव का चिंतवन करना, सो अजीव विचय नाम का धर्म्यध्यान है।44।
-धर्मध्यान के बारे में विस्तार से जानने के लिये देखें धर्मध्यान - 1।