अधस्तन शीर्ष
From जैनकोष
- कृष्टि द्रव्य— क्षपणासार/503/ भाषा–द्वितीयादि समयनिविषै समय समय प्रति असंख्यात गुणा द्रव्य को पूर्व अपूर्व स्पर्धक संबंधी द्रव्यतै अपकर्षण करै है। उसमें से कुछ द्रव्य तो पूर्व अपूर्व स्पर्धक को ही देवै है और शेष द्रव्य की कृष्टियें करता है। इस द्रव्य को कृष्टि संबंधी द्रव्य कहते हैं। इस द्रव्य में चार विभाग होते हैं–अधस्तन शीर्ष द्रव्य, अधस्तन कृष्टि द्रव्य, मध्य खंड द्रव्य, उभय द्रव्य विशेष।
- अधस्तन शीर्ष द्रव्य—पूर्व पूर्व समय विषैकरि कृष्टि तिनि विषै प्रथम कृष्टितै लगाय (द्रव्य प्रमाणका) विशेष घटता क्रम है। सो पूर्व पूर्व कृष्टिनि को आदि कृष्टि समान करने के अर्थ घटे विशेषनि का द्रव्यमात्र जो द्रव्य तहां पूर्व कृष्टियों में दीजिए वह अधस्तन शीर्ष विशेष द्रव्य है।
- अधस्तन कृष्टि द्रव्य—अपूर्व कृष्टियों के द्रव्य को भी पूर्व कृष्टियों की आदि कृष्टि के समान करने के अर्थ जो द्रव्य दिया सो अधस्तन कृष्टि द्रव्य है।
- उभय द्रव्य विशेष—पूर्व पूर्व कृष्टियों को समान कर लेने के पश्चात् अब उनमें स्पर्धकों की भाँति पुन: नया विशेष हानि उत्पन्न करने के अर्थ जो द्रव्य पूर्व व अपूर्व दोनों कृष्टियों को दिया उसे उभय द्रव्य विशेष कहते हैं।
- मध्य खंड द्रव्य—इन तीनों की जुदा अवशेष जो द्रव्य रहा ताकी सर्व कृष्टिनि विषै समानरूप दीजिए, ताकौ मध्यखंड द्रव्य कहते हैं।
इस प्रकार द्रव्य विभाजन में 23 उष्ट्रकूट रचना होती है।
और देखें कृष्टि - 8।