अबंध
From जैनकोष
1. अबंध का लक्षण-
गोम्मटसार कर्मकांड/भाषा/644/838
वर्तमान काल विषै जहाँ पर नव संबंधी आगामी आयु का बंध होई ... तहाँ बंध कहिये जो आगामी आयु का अतीतकाल विषै बंधन भया, वर्तमान काल विषै भी न हो है ... तहाँ अबंध कहिये । जहाँ आगामी आयु का पूर्व बंध भया हो और वर्तमान काल विषै बंध न होता हो ... तहाँ उपरतबंध कहिये ।
देखें बंध - 1।
2. अबंध प्रकृतियाँ-
(पंचसंग्रह / प्राकृत/2/6) वण्ण-रस-गंध-फासा चउ चउ इगि सत्त सम्ममिच्छत्तं। होंति अबंधा बंधण पण पण संघाय सम्मत्तं।6। = चार वर्ण, चार रस, एक गंध, सात स्पर्श, सम्यग्मिथ्यात्व, सम्यक्त्वप्रकृति, पाँच बंधन और पाँच संघात, ये अठ्ठाईस (28) प्रकृतियाँ बंध के अयोग्य होती हैं।6।
देखें प्रकृतिबंध - 2।