आकाशगता चूलिका
From जैनकोष
धवला 1/1,1,2/113/2 आयासगया णाम...आगास-गमण णिमित्त-मंत-तंत तवच्छरणाणि वण्णेदि। = आकाशगता चूलिका आकाश में गमन करने के कारणभूत मंत्र, तंत्र और तपश्चरण का वर्णन करती है। ( हरिवंशपुराण/10/124 ); ( धवला 9/4,1,45/209-210 ); ( गोम्मटसार जीवकांड / जीवतत्त्व प्रदीपिका/361-362/773/5 )।
चूलिका के अन्य भेद एवं शब्द ज्ञान के विस्तार को जानने के लिए देखें शब्द लिंगज श्रुतज्ञान विशेष
श्रुतज्ञान के सम्बन्ध में विशेष जानने हेतु देखें श्रुतज्ञान - III।