आम्नाय
From जैनकोष
सिद्धांतकोष से
सर्वार्थसिद्धि अध्याय 9/25/443/5/
घोषशुद्धंपरिवर्तनमाम्नायः।
= उच्चारण की शुद्धि पूर्वक पाठ को पुनः पुनः दोहराना आम्नाय है।
(तत्त्वार्थसार अधिकार 7/19), (अनगार धर्मामृत अधिकार 7/87/716)
राजवार्तिक अध्याय 9/25/4/624/16व्रतिनो वेदितसमाचारस्यैहलौकिकफलनिरपेक्षस्य द्रुतविलंबितादिघोषविशुद्धं परिवर्तनमाम्नाय इत्युपदिश्यते।
= आचार पारगामी व्रती का लौकिक फल की अपेक्षा किये बिना द्रुत-विलंबितादि पाठ दोषों से रहित होकर पाठ का फेरना, घोखना आम्नाय है।
(चारित्रसार पृष्ठ 153/3)
पुराणकोष से
स्वाध्याय तप का चौथा भेद- पाठ का बार-बार अभ्यास करना । देखें स्वाध्याय 1.2