• जैनकोष
    जैनकोष
  • Menu
  • Main page
    • Home
    • Dictionary
    • Literature
    • Kaavya Kosh
    • Study Material
    • Audio
    • Video
    • Online Classes
    • Games
  • Share
    • Home
    • Dictionary
    • Literature
    • Kaavya Kosh
    • Study Material
    • Audio
    • Video
    • Online Classes
    • Games
  • Login

जैन शब्दों का अर्थ जानने के लिए किसी भी शब्द को नीचे दिए गए स्थान पर हिंदी में लिखें एवं सर्च करें

उत्कीरण काल

From जैनकोष

 Share 

धवला 14/4,2,7,42/32/1 पारद्धपढमसमयादो अंतोमुहुत्तेण कालो जो घादो णिप्पज्जदि सो अणुभागखंडघादो णाम, जो पुण उक्कीरणकालेण विणा एगसमएणेव पददि सा अणुसमओवट्टणा।=प्रारंभ किये गये प्रथम समय से लेकर अंतर्मुहूर्त काल के द्वारा जो घात निष्पन्न होता है वह अनुभाग कांडक घात है। परंतु उत्कीरण काल के बिना एक समय द्वारा ही जो घात होता है वह अनुसमयापवर्तना है। विशेषार्थ—कांडक पोर को कहते हैं। कुल अनुभाग के हिस्से करके एक एक हिस्से का फालिक्रम से अंतर्मुहूर्त काल के द्वारा अभाव करना अनुभाग कांडकघात कहलाता है। (उपरोक्त कथन पर से उत्कीरणकाल का यह लक्षण फलितार्थ होता है कि कुल अनुभाग के पोर कांडक करके उन्हें घातार्थ जिस अंतर्मुहूर्तकाल में स्थापित किया जाता है, उसे उत्कीरण काल कहते हैं।


देखें काल - 1।


पूर्व पृष्ठ

अगला पृष्ठ

Retrieved from "http://www.jainkosh.org/w/index.php?title=उत्कीरण_काल&oldid=108369"
Categories:
  • उ
  • करणानुयोग
JainKosh

जैनकोष याने जैन आगम का डिजिटल ख़जाना ।

यहाँ जैन धर्म के आगम, नोट्स, शब्दकोष, ऑडियो, विडियो, पाठ, स्तोत्र, भक्तियाँ आदि सब कुछ डिजिटली उपलब्ध हैं |

Quick Links

  • Home
  • Dictionary
  • Literature
  • Kaavya Kosh
  • Study Material
  • Audio
  • Video
  • Online Classes
  • Games

Other Links

  • This page was last edited on 18 January 2023, at 13:30.
  • Privacy policy
  • About जैनकोष
  • Disclaimers
© Copyright Jainkosh. All Rights Reserved
Powered by MediaWiki