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जैन शब्दों का अर्थ जानने के लिए किसी भी शब्द को नीचे दिए गए स्थान पर हिंदी में लिखें एवं सर्च करें

उदंबर

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बड़ बटी, पीपल बटी, ऊमर, कटूमर, पाकर, गूलर, अंजीर आदि फल उदंबर फल हैं इनमें उड़ते हुए त्रस जीव प्रत्यक्ष देखे जा सकते हैं। उदंबर फल यद्यपि पाँच बताये जाते हैं, परंतु इसी जाति के अन्य भी फल इन्हीं में गर्भित समझना।

1. उदंबर फलों के अतिचार

सागार धर्मामृत अधिकार 3/14

स फलमविज्ञातं वार्ताकादि त्वदारितं। तद्वद् भल्लादिसिंबीश्च त्यादेन्नोदुंबरव्रती ।14।

= उदंबर त्यागव्रत को पालन करने वाला श्रावक संपूर्ण अज्ञात फलों को तथा बिना चीरे हुए भटा वगैरह को और उसी तरह बिना चीरी सेम की फली न खावे।

लांटी संहिता अधिकार 2/79-103

अत्रोदुंबरशब्दस्तु नूनं स्यादुपलक्षणम्। तेन साधारणस्त्याज्या ये वनस्पतिकायिकाः ।79। मलबीजा यथा प्रोक्ता फलकाद्याद्रकादयः। न भक्ष्या दैवयोगाद्वा रोगिणाप्यौषधच्छलात् ।80। एवमन्यदपि त्याज्यं यत्साधारणलक्षणम्। त्रसाश्रितं विशेषेण तद्द्वियुक्तस्य का कथा ।90। साधारणं च केषांचिन्मूलं स्कंधस्तथागमात्। शाखाः पत्राणि पुष्पाणि पर्व दुग्धफलानि च ।91। कुंपलानि च सर्वेषां मृदूनि च यथागमम्। संति साधारणान्येव प्रोक्तकालावधेरधः ।97।

= यहाँपर उदंबर शब्द का ग्रहण उपलक्षण रूप है। अतः सर्व ही साधारण वनस्पतिकायिक त्याज्य हैं ।79। मूलबीज, अग्रबीज, पोरबीज और किसी प्रकार के भी अनंतकायिक फल जैसे अदरख आदि उन्हें नहीं खाना चाहिए। न दैवयोग से खाने चाहिए और न ही रोग में औषधि के रूप में खाने चाहिए ।80। इसी प्रकार से अन्य भी साधारण लक्षणवाली तथा विशेषतः त्रसजीवों के आश्रयभूत वनस्पति का त्याग कर देना चाहिए ।90। किसी वृक्ष की जड़ साधारण होती है और किसी की शाखा, स्कंध, पत्र, पुष्प व पर्व आदि साधारण होते हैं। किसी वृक्ष का दूध व फल अथवा क्षीर फल (जिन फलों को तोड़ने पर दूध निकलता हो) साधारण होते हैं ।91। कूंपलें तथा सर्व ही कोमल पत्ते व फल आगम के अनुसार यथाकाल की अवधि पर्यंत साधारण रहते हैं, पीछे प्रत्येक हो जाते हैं। उनका भी त्याग करना चाहिए ।97।


• पंच उदंबर फलों का निषेध - देखें भक्ष्याभक्ष्य - 4



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