एकत्व प्रत्यभिज्ञान
From जैनकोष
न्यायदीपिका/3/8-9/56/5 यथा स एवाऽय जिनदत्तः, गोसदृशो गवयः, गोविलक्षणमहिष इत्यादि ।8. अत्र हि पूर्वस्मिन्नुदाहरणे जिनदत्तस्य पूर्वोत्तरदशाद्वयव्यापकमेकत्वं प्रत्यभिज्ञानस्य विषयः । तदिदमेकत्वप्रत्यभिज्ञानम् । द्वितीयेतु पूर्वानुभूतगोप्रतियोगिकं गवयनिष्ठ सादृश्यम् । तदिदं सादृश्यप्रत्यभिज्ञानम् । तृतीये तु पुनः प्रागनुभूतगोप्रतियोगिक महिषनिष्ठ वैसादृश्यम् । तदिदं वैसादृश्यप्रत्यभिज्ञानम् ।
=जैसे वही यह जिनदत्त है, गौ के समान गवय होता है, गाय से भिन्न भैंसा होता है, इत्यादि । यहां पहले उदाहरण में जिनदत्त की पूर्व और उत्तर अवस्था में रहने वाली एकता प्रत्यभिज्ञान का विषय है । इसी को एकत्व प्रत्यभिज्ञान कहते हैं ......।
अधिक जानकारी के लिये देखें प्रत्यभिज्ञान-3 ।