औपशमिक सम्यक्त्व
From जैनकोष
सम्यग्दर्शन का एक भेद । यह दर्शनमोहनीय कर्म के उपशमन से उत्पन्न होता है । इससे जीव आदि पदार्थों का यथार्थ स्वरूप विदित होता है । महापुराण 9.117, हरिवंशपुराण - 3.143-144
सम्यग्दर्शन का एक भेद । यह दर्शनमोहनीय कर्म के उपशमन से उत्पन्न होता है । इससे जीव आदि पदार्थों का यथार्थ स्वरूप विदित होता है । महापुराण 9.117, हरिवंशपुराण - 3.143-144