कंडरा
From जैनकोष
भगवती आराधना / मूल या टीका गाथा 1027-1035/1072-1076
अट्ठीणि हुंति तिण्णि हु सदाणि भरिदाणि कुणिममज्जाए। सव्वम्मि चेव देहे संधीणि हवंति तावदिया ।1027। ण्हारूण णवसदाइं सिरासदाणि य हवंति सत्तेव। देहम्मि मंसपेसाणि हुति पंचेव य सदाणि ।1028। चत्तारि सिरजालाणि हुंति सोलस य कंडराणि तहा। ..... ।1035।
= इस मनुष्य के देह में 300 अस्थि हैं, वे दुर्गंध मज्जा नामक धातु से भरी हुई हैं। और 300 ही संधि हैं ।1027। 900 स्नायु हैं, 700 सिरा हैं, 500 मांसपेशियां हैं ।1028। 4 जाल हैं, 16 कंडरा हैं, 6 सिराओं के मूल हैं, और 2 मांस रज्जू हैं ।1029। .....।
औदारिक शरीर में कंडराओं का प्रमाण–देखें औदारिक -7.1